विजय शंकर पंकज (यूरीड मीडिया)। अज्ञानतावश आजकल भगवान परशुराम को लेकर तमाम तरह की भ्रान्तियां फैल रही है। यही नही हालात तो इतने बदतर हो गये है कि कुछ लोग अपनी जातीय, संकीर्ण एवं विद्वेषपूर्ण मानसिकता के कारण भगवान राम और परशुराम में ही संघर्ष की बाते प्रचारित कर रहे है। भगवान राम और परशुराम को जातीय परिवेश में बांटना अज्ञानता के सिवा कुछ नही है। यह दोनो ही भगवान विष्णु के अंशावतार है। भगवान राम को कोदण्डधारी बनाने में परशुराम का ही योगदान है।
भगवान राम जातिवादी होते तो सूर्य बंश में जन्मे क्षत्रिय कुमार राम को कोदण्ड प्रदान नही करते। कुछ अज्ञानी और संकीर्ण सोच के लोगो ने परशुराम को क्षत्रिय विरोधी कहकर उनके साथ अन्याय ही किया है। अत्याचारियांे पर अंकुश लगाने के लिए परशुराम को पृथ्वी लोक में भेजा गया था। मनुष्य को शस्त्र ज्ञान का बोध कराने वाले पहले व्यक्ति परशुराम है। त्रिदेवो में भगवान शंकर विनाश के देवता माने जाते है। सृष्टि के सभी खतरनाक शस्त्र शंकर की ही देन है। परशुराम उन्ही शंकर के प्रथम शिष्य है।
भगवान परशुराम पहले ऐसे व्यक्ति है जिनके पास भगवान विष्णु के दोनो ही शस्त्र ही धनुष कोदण्ड और चक्र सुदर्शन दोनो ही थे। इसके बावजूद परशुराम ने जीवन में कभी भी इन दोनो ही शस्त्रों का प्रयोग नही किया। परशुराम जीवन भर आततायी राजाओं के खिलाफ युद्ध लड़ते रहे परन्तु स्व निर्मित शस्त्र कुठार के अलावा अन्य शस्त्रो का प्रयोग नही किया जो भगवान शंकर और विष्णु से उन्हें प्राप्त हुआ था। यही नही परशुराम ने भगवान राम को कोदण्ड धनुष प्रदान किया तो भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्हें नये समाज की स्थापना के लिए चक्र सुदर्शन प्रदान किया। परशुराम क्षत्रिय विरोधी होते तो राम और कृष्ण दोनो ही क्षत्रिय राजकुमारो को यह शस्त्र क्यो प्रदान करते? राम सूर्यबंशी क्षत्रिय थे तो कृष्ण चन्द्रबंशीय क्षत्रीय थे। परशुराम का पूरे जीवन में सूर्य बंशीय एवं चन्द्रबंशीय राजाओ से संघर्ष नही हुआ।
परशुराम का पहला संघर्ष हैहय बंशीय क्षत्रिय राजा सहस्त्राबाहु से हुआ। सहस्त्राबाहु को अत्याचारी शासक होने के नाते राक्षस की भी संज्ञा दी गयी है। सहस्त्राबाहु ने परशुराम की माता रेणुका का अपहरण कर लिया था। यह सृष्टि के सतयुग काल का विवरण है। मानवीय विकास क्रम में इस काल को पाषाण युग कहा जाता है। तब मनुष्य का हथियार लाठी और पत्थरो से बने नुकीले हथियार ही होते थे। अत्याचारी होने के नाते भयभीत सहस्त्राबाहु के साथ हमेशा ही 500 लठैत सुरक्षा में रहते थे। इसीलिए उसे सहस्त्राबाहु कहा जाता था जिसके साथ एक हजार होते। सहस्त्राबाहु की सुरक्षा तब की अभेद्य मानी जाती थी। सहस्त्राबाहु का लंका के राजा रावण से भी युद्ध हुआ था।
परशुराम के पिता का मूल नाम यमद था। आचार्य यमद ने ही पहली बार अग्नि की खोज की। इसके बाद यमद का नाम यमदग्नि हो गया। यमद का आश्रम आज कल के यूपी के सोनभद्र जिले में रिहन्द नदी के किनरे था। रिहन्द नदी का वैदिक नाम रेणुका है। यही पर यमदग्नि ने आदिवासी कन्या से शादी की और उसे रेणुका नाम दिया। पुत्र परशुराम के पैदा होने के बाद यमदग्नि अपने पुराने आश्रम को छोड़ फलो से संपन्न जंगल में उत्तर पूर्व के गांधी क्षेत्र में आ गये जिसे आज कल गाजीपुर जिला कहते है। यहां पर यमदग्नि का आश्रम आज के जमानिया तहसील के पास था। यही से सहस्त्राबाहु ने रेणुका का अपहरण किया था।
पिता के आश्रम में ही अलाव में जल रहे विन्ध्य पर्वता के पत्थरो से परशुराम ने लोहे की खोज की। इसी लोहे को ठोक पीटकर लकड़ी के डंडे में लगाकर परशु (कुठार) बनाया। परशुराम का मूल नाम राम ही था परन्तु परशु की खोज करने के बाद वह परशुराम नाम से विख्यात हुए।
मां के अपहरण से परशुराम के अन्दर अग्नि की ज्वाला धधक उठी। पिता की अग्नि उनके रोम रोम में समा गयी। क्रोधित परशुराम 15 वर्ष की ही किशोरावस्था में सहस्त्राबाहु के महल में प्रवेश कर गये। शायद सुरक्षाकर्मियो ने परशुराम को बालक समझकर उनके महल प्रवेश को गंभीर नही माना। परशुराम ने महल पहुंचकर सहस्त्राबाहु का सर और हाथ काट दिया और मां को साथ लेकर बाहर निकले तो उनके कुठार से बहते खून को देख सुरक्षाकर्मी भाग खड़े हुए। उस समय लाठी या पत्थर से सर या हाथ नही कटते थे। सहस्त्राबाहु के सैनिको में परशुराम का भय व्याप्त हो गया। इस घटना के बाद ही परशुराम हिमालय में भगवान शंकर के पास चले गये और उनसे शस्त्र विद्या का ज्ञान लेकर लौटे।
परशुराम सृष्टि के पहले जननायक है। परशुराम का न कोई राज्य था और नही कोई विधिवत सेना थी। आचार्य पुत्र परशुराम ने कभी राज्य स्थापित करने की पहल भी नही की। उन्होने शस्त्र विद्या की जानकारी देने के लिए आश्रम खोला। अत्याचारी राजाओं से पीड़ित आम जनता को जागरूक करने और प्रतिकार के लिए शस्त्र विद्या सिखाने लगे। परशुराम ने पीड़ित लोगो को ही इक्कठा कर अत्याचारी शासको को सबक खिखाया।
परशुराम ने भगवान राम को कोदण्ड प्रदान करते हुए, इसी युद्ध नीति का ज्ञान दिया। किसी भी देश की सेना से जनभागीदारी तथा आमजन का सहयोग ज्यादा प्रभावी होता है। यही वजह रही कि रावण पर चढ़ाई करने से पहले राम ने अपने किसी सहयोगी राजा से मदद की गुहार नही बल्कि आदिवासी और बंचित लोगो को साथ मिलाया।
राम और परशुराम को लेकर तमाम तरह की भ्रान्तियां पैदा की जाती है। राम ने परशुराम का तेज हर लिया। राम और परशुराम एक दूसरे के पूरक है। वैसे भी परशुराम ब्रााह्मण कुल में पैदा होने के साथ ही राम से उम्र में बड़े थे। दोनो में एक युग का अन्तर था। राम और कृष्ण को पृथ्वी लोक छोड़ कर जाना पड़ा परन्तु विष्णु अंश के रूप में परशुराम अमर कहे जाते है। पिता यमदग्नि की वजह से बालपन से ही परशुराम के व्यक्तित्व में अग्नि का प्रभाव रहा। यही वजह रही कि ब्रााह्मण बंश में पैदा होने के बाद भी उनमें क्रोध की अधिकता थी। परशुराम किसी भी प्रकार का अत्याचार बर्दाश्त नही कर पाते जिससे भी उनके अन्दर क्रोध उत्पन्न हो जाता है। यही वजह रही कि राम को कोदण्ड प्रदान कर परशुराम ने कहा - राम अब यह युग संभालो। अत्याचार देख मेरा क्रोध शान्त नही होता। क्रोध का शमन करने के लिए में तपस्या करने हिमालय जाता हूं। परशुराम को मन की गति से चलने का आर्शिवाद था। रामावतार के बाद परशुराम दिन में पृथ्वी पर कही भी विचरण करे परन्तु रात्रि विश्राम हिमालय में भगवान शंकर की ही शरण में करते है।
अत्याचारी की कोई जाति नही होती है। कुछ वर्षो से जातिवाद दुराग्रह बढ़ते जा रहे है। रावण और बाली ने अपने ही भाई को देश निकाला दे दिया। सत्ता और अधिकार के लिए बाप - बेटे और भाईयो में युद्ध हुए है। पूरा महाभारत का यु्द्ध ही भाइयो के ही बीच जमीन के लिए हुआ। ऐसे में जब सगे खून के रिश्ते एक नही हो सकते तो जाति वाला कौन साथ देगा। महापुरूषो को जातीय परिवेश में बांटना उनके साथ सबसे बड़ा अन्याय है।
जय श्रीराम - परशुराम
भगवान राम जातिवादी होते तो सूर्य बंश में जन्मे क्षत्रिय कुमार राम को कोदण्ड प्रदान नही करते। कुछ अज्ञानी और संकीर्ण सोच के लोगो ने परशुराम को क्षत्रिय विरोधी कहकर उनके साथ अन्याय ही किया है। अत्याचारियांे पर अंकुश लगाने के लिए परशुराम को पृथ्वी लोक में भेजा गया था। मनुष्य को शस्त्र ज्ञान का बोध कराने वाले पहले व्यक्ति परशुराम है। त्रिदेवो में भगवान शंकर विनाश के देवता माने जाते है। सृष्टि के सभी खतरनाक शस्त्र शंकर की ही देन है। परशुराम उन्ही शंकर के प्रथम शिष्य है।
भगवान परशुराम पहले ऐसे व्यक्ति है जिनके पास भगवान विष्णु के दोनो ही शस्त्र ही धनुष कोदण्ड और चक्र सुदर्शन दोनो ही थे। इसके बावजूद परशुराम ने जीवन में कभी भी इन दोनो ही शस्त्रों का प्रयोग नही किया। परशुराम जीवन भर आततायी राजाओं के खिलाफ युद्ध लड़ते रहे परन्तु स्व निर्मित शस्त्र कुठार के अलावा अन्य शस्त्रो का प्रयोग नही किया जो भगवान शंकर और विष्णु से उन्हें प्राप्त हुआ था। यही नही परशुराम ने भगवान राम को कोदण्ड धनुष प्रदान किया तो भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्हें नये समाज की स्थापना के लिए चक्र सुदर्शन प्रदान किया। परशुराम क्षत्रिय विरोधी होते तो राम और कृष्ण दोनो ही क्षत्रिय राजकुमारो को यह शस्त्र क्यो प्रदान करते? राम सूर्यबंशी क्षत्रिय थे तो कृष्ण चन्द्रबंशीय क्षत्रीय थे। परशुराम का पूरे जीवन में सूर्य बंशीय एवं चन्द्रबंशीय राजाओ से संघर्ष नही हुआ।
परशुराम का पहला संघर्ष हैहय बंशीय क्षत्रिय राजा सहस्त्राबाहु से हुआ। सहस्त्राबाहु को अत्याचारी शासक होने के नाते राक्षस की भी संज्ञा दी गयी है। सहस्त्राबाहु ने परशुराम की माता रेणुका का अपहरण कर लिया था। यह सृष्टि के सतयुग काल का विवरण है। मानवीय विकास क्रम में इस काल को पाषाण युग कहा जाता है। तब मनुष्य का हथियार लाठी और पत्थरो से बने नुकीले हथियार ही होते थे। अत्याचारी होने के नाते भयभीत सहस्त्राबाहु के साथ हमेशा ही 500 लठैत सुरक्षा में रहते थे। इसीलिए उसे सहस्त्राबाहु कहा जाता था जिसके साथ एक हजार होते। सहस्त्राबाहु की सुरक्षा तब की अभेद्य मानी जाती थी। सहस्त्राबाहु का लंका के राजा रावण से भी युद्ध हुआ था।
परशुराम के पिता का मूल नाम यमद था। आचार्य यमद ने ही पहली बार अग्नि की खोज की। इसके बाद यमद का नाम यमदग्नि हो गया। यमद का आश्रम आज कल के यूपी के सोनभद्र जिले में रिहन्द नदी के किनरे था। रिहन्द नदी का वैदिक नाम रेणुका है। यही पर यमदग्नि ने आदिवासी कन्या से शादी की और उसे रेणुका नाम दिया। पुत्र परशुराम के पैदा होने के बाद यमदग्नि अपने पुराने आश्रम को छोड़ फलो से संपन्न जंगल में उत्तर पूर्व के गांधी क्षेत्र में आ गये जिसे आज कल गाजीपुर जिला कहते है। यहां पर यमदग्नि का आश्रम आज के जमानिया तहसील के पास था। यही से सहस्त्राबाहु ने रेणुका का अपहरण किया था।
पिता के आश्रम में ही अलाव में जल रहे विन्ध्य पर्वता के पत्थरो से परशुराम ने लोहे की खोज की। इसी लोहे को ठोक पीटकर लकड़ी के डंडे में लगाकर परशु (कुठार) बनाया। परशुराम का मूल नाम राम ही था परन्तु परशु की खोज करने के बाद वह परशुराम नाम से विख्यात हुए।
मां के अपहरण से परशुराम के अन्दर अग्नि की ज्वाला धधक उठी। पिता की अग्नि उनके रोम रोम में समा गयी। क्रोधित परशुराम 15 वर्ष की ही किशोरावस्था में सहस्त्राबाहु के महल में प्रवेश कर गये। शायद सुरक्षाकर्मियो ने परशुराम को बालक समझकर उनके महल प्रवेश को गंभीर नही माना। परशुराम ने महल पहुंचकर सहस्त्राबाहु का सर और हाथ काट दिया और मां को साथ लेकर बाहर निकले तो उनके कुठार से बहते खून को देख सुरक्षाकर्मी भाग खड़े हुए। उस समय लाठी या पत्थर से सर या हाथ नही कटते थे। सहस्त्राबाहु के सैनिको में परशुराम का भय व्याप्त हो गया। इस घटना के बाद ही परशुराम हिमालय में भगवान शंकर के पास चले गये और उनसे शस्त्र विद्या का ज्ञान लेकर लौटे।
परशुराम सृष्टि के पहले जननायक है। परशुराम का न कोई राज्य था और नही कोई विधिवत सेना थी। आचार्य पुत्र परशुराम ने कभी राज्य स्थापित करने की पहल भी नही की। उन्होने शस्त्र विद्या की जानकारी देने के लिए आश्रम खोला। अत्याचारी राजाओं से पीड़ित आम जनता को जागरूक करने और प्रतिकार के लिए शस्त्र विद्या सिखाने लगे। परशुराम ने पीड़ित लोगो को ही इक्कठा कर अत्याचारी शासको को सबक खिखाया।
परशुराम ने भगवान राम को कोदण्ड प्रदान करते हुए, इसी युद्ध नीति का ज्ञान दिया। किसी भी देश की सेना से जनभागीदारी तथा आमजन का सहयोग ज्यादा प्रभावी होता है। यही वजह रही कि रावण पर चढ़ाई करने से पहले राम ने अपने किसी सहयोगी राजा से मदद की गुहार नही बल्कि आदिवासी और बंचित लोगो को साथ मिलाया।
राम और परशुराम को लेकर तमाम तरह की भ्रान्तियां पैदा की जाती है। राम ने परशुराम का तेज हर लिया। राम और परशुराम एक दूसरे के पूरक है। वैसे भी परशुराम ब्रााह्मण कुल में पैदा होने के साथ ही राम से उम्र में बड़े थे। दोनो में एक युग का अन्तर था। राम और कृष्ण को पृथ्वी लोक छोड़ कर जाना पड़ा परन्तु विष्णु अंश के रूप में परशुराम अमर कहे जाते है। पिता यमदग्नि की वजह से बालपन से ही परशुराम के व्यक्तित्व में अग्नि का प्रभाव रहा। यही वजह रही कि ब्रााह्मण बंश में पैदा होने के बाद भी उनमें क्रोध की अधिकता थी। परशुराम किसी भी प्रकार का अत्याचार बर्दाश्त नही कर पाते जिससे भी उनके अन्दर क्रोध उत्पन्न हो जाता है। यही वजह रही कि राम को कोदण्ड प्रदान कर परशुराम ने कहा - राम अब यह युग संभालो। अत्याचार देख मेरा क्रोध शान्त नही होता। क्रोध का शमन करने के लिए में तपस्या करने हिमालय जाता हूं। परशुराम को मन की गति से चलने का आर्शिवाद था। रामावतार के बाद परशुराम दिन में पृथ्वी पर कही भी विचरण करे परन्तु रात्रि विश्राम हिमालय में भगवान शंकर की ही शरण में करते है।
अत्याचारी की कोई जाति नही होती है। कुछ वर्षो से जातिवाद दुराग्रह बढ़ते जा रहे है। रावण और बाली ने अपने ही भाई को देश निकाला दे दिया। सत्ता और अधिकार के लिए बाप - बेटे और भाईयो में युद्ध हुए है। पूरा महाभारत का यु्द्ध ही भाइयो के ही बीच जमीन के लिए हुआ। ऐसे में जब सगे खून के रिश्ते एक नही हो सकते तो जाति वाला कौन साथ देगा। महापुरूषो को जातीय परिवेश में बांटना उनके साथ सबसे बड़ा अन्याय है।
जय श्रीराम - परशुराम
10th August, 2020