राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- भारतीय जनता पार्टी की जो राजनीतिक कार्यशैली है उससे विपक्षी दलों का राज्यों में सरकार चलाना बहुत आसान नहीं रह गया है। जिस तरह से मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं देश के अन्य राज्यों में गैर भाजपा सरकारों की स्थिति बन गयी है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में गैर भाजपा दल सपा, बसपा, कांग्रेस एवं अन्य दलों को जिताऊ के साथ साथ ही टिकाऊ विधायक चाहिये। उत्तर प्रदेश की जो सियासत है यहाँ पर तो विधायक प्रमाण पत्र पाने के साथ ही पाला बदलने में माहिर हैं।
1989 से लेकर 2002 तक उत्तर प्रदेश के विधायकों का पाला बदलने का रिकॉर्ड बना चुके है। ऐसी स्थिति में वर्तमान में जो हालात है उसे देखते हुए यह सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि संख्या चाहे जितनी जिसकी हो, लेकिन सरकार भाजपा ही बनाएगी। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह को राज्यों के चुनाव और सियासत पर ज्यादा परेशान होने जरुरत नहीं है। अगर गलती से उत्तर प्रदेश में भाजपा को बहुमत नहीं मिला या दूसरे दल बहुमत की सरकार बना सकते है तो भी भाजपा जोड़ तोड़ दस्ता बना लेगा। दस्ता भाजपा की सरकार बनवा देगा। राजस्थान में अशोक गहलोत जैसे अनुभवी और जमीनी नेता को भाजपा के जोड़ तोड़ दस्ते ने पानी पीला दिया है। 14 अगस्त को राजस्थान सरकार का सत्र शुरू होने जा रहा है। जोड़ तोड़ दस्ता जिस मुस्तैदी के साथ लगा है उसे गहलोत सरकार कितना मुकाबला कर पाएंगे यह तो आने वाला समय बताएगा। भाजपा का सरकार बनाने का जोड़ तोड़ दस्ता मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में सफलता हासिल कर चूका है जहाँ तक उत्तर प्रदेश का सवाल है यहाँ सपा और बसपा तथा कांग्रेस तीनों दल अगर संख्या बल में अधिक होते है तो भाजपा के जोड़ तोड़ जस्ते का जबर्दस्त मुक़ाबला करना पड़ेगा।
इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जिताऊ के साथ टिकाऊ विधायक की जरूरत होगी। क्योकि जिस तरह 2012 से 2017 आसानी से सरकार चालाते रहे ऐसी सरकार चलाना बहुत मुश्किल है क्योकि 2019 लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित बहुमत के बाद भाजपा का सरकार बनाओ जोड़ तोड़ दस्ता बहुत आक्रामक और उत्साहित है। 2017 से पहले जोड़ तोड़ दस्ते का मनोबल इतना अधिक नहीं बढ़ा था इसलिए तमाम उठापटक के बीच भी अखिलेश यादव 5 साल कार्यकाल पूरा कर पाए।
जहाँ तक मायावती और बसपा का सवाल है इसके विधायाक जिताऊ के साथ साथ टिकाऊ कम होते हैं। 2007 से 2012 बसपा की बहुमत की सरकार को छोड़ दे तो बसपा के विधायक जिताऊ के साथ साथ टिकाऊ नहीं रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भी लगातार बसपा जब सत्ता में नहीं थी तो टूटती रही । दूसरे राज्यों मे तो बसपा चुनाव जरूर जीतती है लेकिन विधायक टिकाऊ नहीं होते हैं। बसपा के विरोधी आरोप लागाते है कि पैसा देकर टिकट खरीदने वाले विधायक जीतने के बाद बिकाऊ हो जाते हैं। यह भी माना जा रहा है कि अगर भाजपा को जरूरत हो तो उत्तर प्रदेश में बसपा के विधायक टूट सकते हैं। इसलिए मायावती को उत्तर प्रदेश में जिताऊ के साथ टिकाऊ प्रत्याशी खोजना बहुत बड़ी चुनौती होगी।
हाशिये पर खड़ी कांग्रेस में भी प्रियका गांधी को जिताऊ के साथ टिकाऊ चेहरे ढूढ़ना आसान नहीं है। 2017 में मात्र 6 विधायकों की टीम में आधी टीम कांग्रेस की टिकाऊ नहीं रह गयी है। 6 में 3 विधायक कांग्रेस से पल्ला झाड़ चुके हैं। यही स्थिति अन्य छोटे छोटे दलों में भी जिताऊ और टिकाऊ की लागु होती है। गैर भाजपा दल 2022 को जिताऊ के साथ ही टिकाऊ पर विशेष ध्यान देना होगा।
1989 से लेकर 2002 तक उत्तर प्रदेश के विधायकों का पाला बदलने का रिकॉर्ड बना चुके है। ऐसी स्थिति में वर्तमान में जो हालात है उसे देखते हुए यह सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि संख्या चाहे जितनी जिसकी हो, लेकिन सरकार भाजपा ही बनाएगी। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह को राज्यों के चुनाव और सियासत पर ज्यादा परेशान होने जरुरत नहीं है। अगर गलती से उत्तर प्रदेश में भाजपा को बहुमत नहीं मिला या दूसरे दल बहुमत की सरकार बना सकते है तो भी भाजपा जोड़ तोड़ दस्ता बना लेगा। दस्ता भाजपा की सरकार बनवा देगा। राजस्थान में अशोक गहलोत जैसे अनुभवी और जमीनी नेता को भाजपा के जोड़ तोड़ दस्ते ने पानी पीला दिया है। 14 अगस्त को राजस्थान सरकार का सत्र शुरू होने जा रहा है। जोड़ तोड़ दस्ता जिस मुस्तैदी के साथ लगा है उसे गहलोत सरकार कितना मुकाबला कर पाएंगे यह तो आने वाला समय बताएगा। भाजपा का सरकार बनाने का जोड़ तोड़ दस्ता मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में सफलता हासिल कर चूका है जहाँ तक उत्तर प्रदेश का सवाल है यहाँ सपा और बसपा तथा कांग्रेस तीनों दल अगर संख्या बल में अधिक होते है तो भाजपा के जोड़ तोड़ जस्ते का जबर्दस्त मुक़ाबला करना पड़ेगा।
इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जिताऊ के साथ टिकाऊ विधायक की जरूरत होगी। क्योकि जिस तरह 2012 से 2017 आसानी से सरकार चालाते रहे ऐसी सरकार चलाना बहुत मुश्किल है क्योकि 2019 लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित बहुमत के बाद भाजपा का सरकार बनाओ जोड़ तोड़ दस्ता बहुत आक्रामक और उत्साहित है। 2017 से पहले जोड़ तोड़ दस्ते का मनोबल इतना अधिक नहीं बढ़ा था इसलिए तमाम उठापटक के बीच भी अखिलेश यादव 5 साल कार्यकाल पूरा कर पाए।
जहाँ तक मायावती और बसपा का सवाल है इसके विधायाक जिताऊ के साथ साथ टिकाऊ कम होते हैं। 2007 से 2012 बसपा की बहुमत की सरकार को छोड़ दे तो बसपा के विधायक जिताऊ के साथ साथ टिकाऊ नहीं रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भी लगातार बसपा जब सत्ता में नहीं थी तो टूटती रही । दूसरे राज्यों मे तो बसपा चुनाव जरूर जीतती है लेकिन विधायक टिकाऊ नहीं होते हैं। बसपा के विरोधी आरोप लागाते है कि पैसा देकर टिकट खरीदने वाले विधायक जीतने के बाद बिकाऊ हो जाते हैं। यह भी माना जा रहा है कि अगर भाजपा को जरूरत हो तो उत्तर प्रदेश में बसपा के विधायक टूट सकते हैं। इसलिए मायावती को उत्तर प्रदेश में जिताऊ के साथ टिकाऊ प्रत्याशी खोजना बहुत बड़ी चुनौती होगी।
हाशिये पर खड़ी कांग्रेस में भी प्रियका गांधी को जिताऊ के साथ टिकाऊ चेहरे ढूढ़ना आसान नहीं है। 2017 में मात्र 6 विधायकों की टीम में आधी टीम कांग्रेस की टिकाऊ नहीं रह गयी है। 6 में 3 विधायक कांग्रेस से पल्ला झाड़ चुके हैं। यही स्थिति अन्य छोटे छोटे दलों में भी जिताऊ और टिकाऊ की लागु होती है। गैर भाजपा दल 2022 को जिताऊ के साथ ही टिकाऊ पर विशेष ध्यान देना होगा।
10th August, 2020