(जूनागढ़ की कहानी)
डॉक्टर अनिल चतुर्वेदी, यूरीड मीडिया- भारत की तीन रियासतें ऐसी थी जहाँ बहुसंख्यंक जनसँख्या का धर्म और शासक का धर्म अलग अलग था। जिनमे हैदराबाद, जूनागढ़ और काश्मीर थे। जूनागढ़ और हैदराबाद के दोनों शासकों ने पाकिस्तान में विलय की कोशिशें की थी और उन्हें पाकिस्तान का पूरा समर्थन भी मिला था। काठियावाड़ राज्यों के समूह के हिस्से का एक भाग जूनागढ़ राज्य था। इसके नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। वी पी मेनन जो राज्यों के विलय को देख रहे थे उन्होंने 21 अगस्त को पाकिस्तान के उच्चायुक्त को एक पत्र लिख कर कहा कि जूनागढ़ राज्य भौगोलिक रूप से पाकिस्तान से नहीं जुड़ा है और वहां की जनसँख्या भी हिन्दू बाहुल्य है अतः उनमे जनमत संग्रह कराया जाये। 12 सितम्बर को माउन्ट बेटन के चीफ ऑफ स्टाफ, लार्ड इस्मे द्वारा नेहरू ने यह सूचना भिजवाई कि भारत जनमत संग्रह के लिए तैयार है। 13 सितम्बर को पाकिस्तान ने इस विलय को स्वीकार कर लिए जाने की भारत को सूचना दी। इसके बाद जूनागढ़ में पाकिस्तान से विलय के खिलाफ जन-आन्दोलन शुरू हो गया, और यह आंदोलन आस पास के राज्यों में भी फ़ैल गया। हालात गंभीर हो गयी क्योकि विलय पत्र कानून सम्मत था।
परन्तु इस परिस्थिति में भारत द्वारा की गयी कोई भी सैन्य कार्यवाई युद्ध छेड़ने जैसी होती। सरदार पटेल भी जानते थे कि इस मौके पर अगर युद्ध हुआ तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसकी जिम्मेदारी भारत पर डालेगा। भारत ने मेनन को जूनागढ़ के नबाब पर जनमत संग्रह पर राजी करने का दवाब डाला लेकिन नबाव ने बीमारी का बहाना बना कर उनसे मिलने से इनकार कर दिया।
उनके दीवान शाहनवाज़ भुट्टो ने भारत के ऐसे प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया और जूनागढ़ के निकट बाबरियावाड़ व मांगरोल राज्य पर भी अपना दावा ठोक दिया। नेहरू और पटेल ने इस पर हस्तक्षेप करने का फैसला किया और भारतीय सेनाओ को बाबरियावाड़ व मांगरोल की सीमाओं पर अपने सैनिक तैनात कर दिए।
दीवान ने परिस्थितियों को समझते हुए जूनागढ़ पर भारत के दवाब को महसूस करने लगे। युद्ध की संभावनाओं को यथासंभव टालते हुए 30 सितम्बर को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली के साथ हुई एक बैठक में नेहरु ने घोषणा की, कि जिन राज्यों में विलय को लेकर विवाद है, वहां भारत जनता की इच्छा को पहली वरीयता देगा तथा जनमत संग्रह, आम चुनाव जैसे माध्यमों से ही विलय के फैसले करेगा। उधर 1 अक्टूबर को जूनागढ़ के नवाब ने मांगरोल पर कब्ज़ा कर लिया। भारत ने उसके जवाब में 5 अक्टूबर को लियाकत अली खान को पत्र लिखा कि वह नबाब को मांगरोल से कब्ज़ा हटाने के लिए कहे, क्योकि मांगरोल राज्य के साथ भारत ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। यह पाकिस्तान का भारतीय क्षेत्र में अवैध रूप से हस्तक्षेप माना गया। पाकिस्तान द्वारा उचित जवाब न देने के कारण, जब शांतिपूर्ण समाधान के सभी रास्ते बंद होने पर भारत ने 25 अक्टूबर को मांगरोल पर अपना कब्जे की योजना को हरी झंडी दे दी और यह राज्य जीतने के उपरान्त 1 नवम्बर को बाबरियावाड़ व मांगरोल का प्रशासन भारतीय सिविल सेवा के अंतर्गत दे दिया गया। साथ ही जूनागढ़ पर आर्थिक प्रतिबन्ध बढ़ा दिए गये। जिससे वहां का प्रशासन पंगु हो गया। खाने पीने के चीजों की भयानक कमी हो गयी और राज्य का खजाना खाली भी हो गया। यहाँ उल्लेखित है कि नबाब पहले ही खूब सारा खजाना लेकर कराची जा चुका था। स्थिति इतनी बदतर हो गयी थी कि शाहनवाज भुट्टो ने पहले ही 27 अक्टूबर को अपने राष्ट्रपति जिन्ना को लिखा - "काठियावाड़ के मुसलमानों में पाकिस्तान को लेकर सारा उत्साह खत्म हो गया है।"
5 नवम्बर को जूनागढ़ की स्टेट काउन्सिल ने स्थिती की पुनः समीक्षा करते हुए दोनों अधिराज्यों से अपने संबंधों पर पुनर्विचार की बात मान ली और 8 नवम्बर को दीवान भुट्टों ने भारत से जूनागढ़ का प्रशासन अपने हाथ में ले लेने की गुज़ारिश की। भारत ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके बाद जनमत संग्रह हुआ जिसमे मात्र 90 लोगों ने पाकिस्तान में विलय के पक्ष में वोट किया। इस तरह जूनागढ़ राज्य भारत का कानूनी हिस्सा बन गया।
पाकिस्तान अभी भी जूनागढ़ को अपने नक़्शे में दिखाता है और इसी आधार पर उसे अपना हिस्सा बताता है। जूनागढ़ का विलय भारत में कानूनी रूप से सही था उसमे जनमत संग्रह, भौगोलिक आधार एवं जनता की भावनाओं को देखते हुए जब स्वयं दीवान भुट्टो ने ही उसका प्रशासन भारत को सौप दिया तो इसमें कोई शंका नहीं कि जूनागढ़ भारत का अभिन्न अंग नहीं है। अगर पाकिस्तान अपना दावा काश्मीर पर करता है तो वहां जूनागढ़ राज्य से काश्मीर की स्थिति पूर्णतया अलग थी। वहां काश्मीर और पाकिस्तान के बीच स्टैंड स्टिल समझौता हुआ था जिसमे कहा गया था कि पाकिस्तान और काश्मीर अपनी यथा स्थिति बनाये रखेंगे और पाकिस्तान काश्मीर का विलय नहीं करेगा। अतः जूनागढ़ राज्य कानूनी रूप से भारत का अभिन्न अंग है। यहाँ प्रसंगवश कहा जा सकता है कि दीवान शाहनवाज़ भुट्टो ने बाद में पाकिस्तान की राजनीति में अहम् भूमिका निभाई और उनक बेटे जुल्फिकार अली भुट्टो और पोती बेनजीर भुट्टो दोनों ही आगे चलकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने।
डॉक्टर अनिल चतुर्वेदी, यूरीड मीडिया- भारत की तीन रियासतें ऐसी थी जहाँ बहुसंख्यंक जनसँख्या का धर्म और शासक का धर्म अलग अलग था। जिनमे हैदराबाद, जूनागढ़ और काश्मीर थे। जूनागढ़ और हैदराबाद के दोनों शासकों ने पाकिस्तान में विलय की कोशिशें की थी और उन्हें पाकिस्तान का पूरा समर्थन भी मिला था। काठियावाड़ राज्यों के समूह के हिस्से का एक भाग जूनागढ़ राज्य था। इसके नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। वी पी मेनन जो राज्यों के विलय को देख रहे थे उन्होंने 21 अगस्त को पाकिस्तान के उच्चायुक्त को एक पत्र लिख कर कहा कि जूनागढ़ राज्य भौगोलिक रूप से पाकिस्तान से नहीं जुड़ा है और वहां की जनसँख्या भी हिन्दू बाहुल्य है अतः उनमे जनमत संग्रह कराया जाये। 12 सितम्बर को माउन्ट बेटन के चीफ ऑफ स्टाफ, लार्ड इस्मे द्वारा नेहरू ने यह सूचना भिजवाई कि भारत जनमत संग्रह के लिए तैयार है। 13 सितम्बर को पाकिस्तान ने इस विलय को स्वीकार कर लिए जाने की भारत को सूचना दी। इसके बाद जूनागढ़ में पाकिस्तान से विलय के खिलाफ जन-आन्दोलन शुरू हो गया, और यह आंदोलन आस पास के राज्यों में भी फ़ैल गया। हालात गंभीर हो गयी क्योकि विलय पत्र कानून सम्मत था।
परन्तु इस परिस्थिति में भारत द्वारा की गयी कोई भी सैन्य कार्यवाई युद्ध छेड़ने जैसी होती। सरदार पटेल भी जानते थे कि इस मौके पर अगर युद्ध हुआ तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसकी जिम्मेदारी भारत पर डालेगा। भारत ने मेनन को जूनागढ़ के नबाब पर जनमत संग्रह पर राजी करने का दवाब डाला लेकिन नबाव ने बीमारी का बहाना बना कर उनसे मिलने से इनकार कर दिया।
उनके दीवान शाहनवाज़ भुट्टो ने भारत के ऐसे प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया और जूनागढ़ के निकट बाबरियावाड़ व मांगरोल राज्य पर भी अपना दावा ठोक दिया। नेहरू और पटेल ने इस पर हस्तक्षेप करने का फैसला किया और भारतीय सेनाओ को बाबरियावाड़ व मांगरोल की सीमाओं पर अपने सैनिक तैनात कर दिए।
दीवान ने परिस्थितियों को समझते हुए जूनागढ़ पर भारत के दवाब को महसूस करने लगे। युद्ध की संभावनाओं को यथासंभव टालते हुए 30 सितम्बर को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली के साथ हुई एक बैठक में नेहरु ने घोषणा की, कि जिन राज्यों में विलय को लेकर विवाद है, वहां भारत जनता की इच्छा को पहली वरीयता देगा तथा जनमत संग्रह, आम चुनाव जैसे माध्यमों से ही विलय के फैसले करेगा। उधर 1 अक्टूबर को जूनागढ़ के नवाब ने मांगरोल पर कब्ज़ा कर लिया। भारत ने उसके जवाब में 5 अक्टूबर को लियाकत अली खान को पत्र लिखा कि वह नबाब को मांगरोल से कब्ज़ा हटाने के लिए कहे, क्योकि मांगरोल राज्य के साथ भारत ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। यह पाकिस्तान का भारतीय क्षेत्र में अवैध रूप से हस्तक्षेप माना गया। पाकिस्तान द्वारा उचित जवाब न देने के कारण, जब शांतिपूर्ण समाधान के सभी रास्ते बंद होने पर भारत ने 25 अक्टूबर को मांगरोल पर अपना कब्जे की योजना को हरी झंडी दे दी और यह राज्य जीतने के उपरान्त 1 नवम्बर को बाबरियावाड़ व मांगरोल का प्रशासन भारतीय सिविल सेवा के अंतर्गत दे दिया गया। साथ ही जूनागढ़ पर आर्थिक प्रतिबन्ध बढ़ा दिए गये। जिससे वहां का प्रशासन पंगु हो गया। खाने पीने के चीजों की भयानक कमी हो गयी और राज्य का खजाना खाली भी हो गया। यहाँ उल्लेखित है कि नबाब पहले ही खूब सारा खजाना लेकर कराची जा चुका था। स्थिति इतनी बदतर हो गयी थी कि शाहनवाज भुट्टो ने पहले ही 27 अक्टूबर को अपने राष्ट्रपति जिन्ना को लिखा - "काठियावाड़ के मुसलमानों में पाकिस्तान को लेकर सारा उत्साह खत्म हो गया है।"
5 नवम्बर को जूनागढ़ की स्टेट काउन्सिल ने स्थिती की पुनः समीक्षा करते हुए दोनों अधिराज्यों से अपने संबंधों पर पुनर्विचार की बात मान ली और 8 नवम्बर को दीवान भुट्टों ने भारत से जूनागढ़ का प्रशासन अपने हाथ में ले लेने की गुज़ारिश की। भारत ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके बाद जनमत संग्रह हुआ जिसमे मात्र 90 लोगों ने पाकिस्तान में विलय के पक्ष में वोट किया। इस तरह जूनागढ़ राज्य भारत का कानूनी हिस्सा बन गया।
पाकिस्तान अभी भी जूनागढ़ को अपने नक़्शे में दिखाता है और इसी आधार पर उसे अपना हिस्सा बताता है। जूनागढ़ का विलय भारत में कानूनी रूप से सही था उसमे जनमत संग्रह, भौगोलिक आधार एवं जनता की भावनाओं को देखते हुए जब स्वयं दीवान भुट्टो ने ही उसका प्रशासन भारत को सौप दिया तो इसमें कोई शंका नहीं कि जूनागढ़ भारत का अभिन्न अंग नहीं है। अगर पाकिस्तान अपना दावा काश्मीर पर करता है तो वहां जूनागढ़ राज्य से काश्मीर की स्थिति पूर्णतया अलग थी। वहां काश्मीर और पाकिस्तान के बीच स्टैंड स्टिल समझौता हुआ था जिसमे कहा गया था कि पाकिस्तान और काश्मीर अपनी यथा स्थिति बनाये रखेंगे और पाकिस्तान काश्मीर का विलय नहीं करेगा। अतः जूनागढ़ राज्य कानूनी रूप से भारत का अभिन्न अंग है। यहाँ प्रसंगवश कहा जा सकता है कि दीवान शाहनवाज़ भुट्टो ने बाद में पाकिस्तान की राजनीति में अहम् भूमिका निभाई और उनक बेटे जुल्फिकार अली भुट्टो और पोती बेनजीर भुट्टो दोनों ही आगे चलकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने।
11th August, 2020