राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जो अपने देश को नहीं संभाल पा रहे हैं वह चीन के खिलाफ भारत की क्या मदद करेंगे? ट्रम्प की विश्वसनीयता अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में समाप्त हो चुकी है। उनके किसी भी बात पर भरोसा करना उचित नहीं कहा जा सकता। चीन से तनाव के बीच ट्रम्प ने एक नयी चाल चली और जी7 में भारत को न्यौता दिया है। भारत को दिया जाने वाला यह न्यौता भी चीन को चिढ़ाने जैसा है। ट्रम्प जानते है कि जी7 की प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है। ऐसे में जब पूरी दुनिया में कोरोना से हाहाकार मचा हुआ है। ट्रम्प का जी7 में भारत का न्यौता चीन को चिढ़ाने से ज्यादा और कुछ नहीं है। जी7 में जो 7 देश कनाडा, फ़्रांस, इटली, जर्मनी, जापान, इंग्लैंड और अमेरिका शामिल हैं। इसमें से चार देशों ने पहले से जी7 से किनारा कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालांकि जी7 में ट्रम्प के न्यौते की सराहना की है और जी 7 निमन्त्रण के दूसरे दिन 40 मिनट तक मोदी ने ट्रम्प से बात भी किया। ट्रम्प से बात करने के बाद प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया कि "मैंने दोस्त राष्ट्रपति ट्रम्प से बेहद सुखद व उपयोगी बातचीत की है। कोविड के बाद के वैश्विक ढांचे में भी भारत अमेरिकी रिश्तों की समृद्धता और गहराई एक अहम् स्तम्भ बनी रहेगी।"
मोदी के ट्रम्प के साथ वार्ता और अमेरिका को भरोसे में लेना वर्तमान परिस्थितियों में कूटनीति दृष्टि से देशहित में है। क्योकि जिस तरह से चीन हरकते कर रहा है हमे उसके हरकतो का जवाब देने के लिए दुनिया भर के शक्तिशाली देशों के समर्थंक की आवश्यकता है। निश्चित है कि अमेरिका एक शक्तिशाली राष्ट्र है लेकिन राष्ट्राध्यक्ष के रूप में ट्रम्प विश्वशनीय नहीं। जिस तरह से अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद 130 स्थानों पर धरना प्रदर्शन हो रहे है। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका ही है जहाँ 1.08 लाख मौते और 18.7 लाख लोग प्रभावित है। कोरोना का हाहाकार अमेरिका में जारी है। दूसरी तरफ जनता का भी आक्रोश ट्रम्प के खिलाफ बढ़ रहा है। ऐसे ट्रम्प को अमेरिका को ही संभालना मुश्किल हो रहा है। ट्रम्प की यह रुचि जरूर है कि एशिया की दो बढ़ती ताकतों को आपस में लड़ा दिया जाए जिससे उसके अरबों खरबों के हथियार बिकेंगे और सुपर पावर बनने से एशिया वंचित हो जायेगा।
एशिया में दो बड़ी ताकतें चीन और भारत ही हैं। चीन के अख़बारों में भी यह बात को लेकर काफी चर्चा और आलेख लिखे जा रहे हैं जिसमे भारत की मीडिया को पश्चिमी परस्त न होने का सुझाव भी दिया जा रहा है। ग्लोबल टाइम्स में भारत की मीडिया को 19 मई को एक लेख भी प्रकाशित हुआ है जिसमे यह उल्लेख किया गया है कि भारतीय मीडिया को पश्चिमी परस्त नहीं होना चाहिए क्योकि पश्चिम देश से भारत को कोई वास्तविक लाभ होने वाला नहीं है। पश्चिमी ताकतें चीन और भारत के बीच दुश्मनी बढ़ने के लिए हर तरह से साजिश रच रही है। भारतीय मीडिया को चीन को लेकर गलत फहमी पैदा करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
भारतीय मीडिया को चीन के बारे में अपनी समझ को बढ़ाना चाहिए और चीन पर अधिक संतुलित कवरेज पर काम करना चाहिए और रचनात्मक संबंध बनाने में मदद करनी चाहिए। यह भी आशा है कि वे भारतीय मीडिया पश्चिमी प्रभाव को झटका दे सकते हैं और स्वतंत्र रूप से सोच सकते हैं ताकि वे भारत के हितों को बनाए रख सकें।
मोदी के ट्रम्प के साथ वार्ता और अमेरिका को भरोसे में लेना वर्तमान परिस्थितियों में कूटनीति दृष्टि से देशहित में है। क्योकि जिस तरह से चीन हरकते कर रहा है हमे उसके हरकतो का जवाब देने के लिए दुनिया भर के शक्तिशाली देशों के समर्थंक की आवश्यकता है। निश्चित है कि अमेरिका एक शक्तिशाली राष्ट्र है लेकिन राष्ट्राध्यक्ष के रूप में ट्रम्प विश्वशनीय नहीं। जिस तरह से अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद 130 स्थानों पर धरना प्रदर्शन हो रहे है। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका ही है जहाँ 1.08 लाख मौते और 18.7 लाख लोग प्रभावित है। कोरोना का हाहाकार अमेरिका में जारी है। दूसरी तरफ जनता का भी आक्रोश ट्रम्प के खिलाफ बढ़ रहा है। ऐसे ट्रम्प को अमेरिका को ही संभालना मुश्किल हो रहा है। ट्रम्प की यह रुचि जरूर है कि एशिया की दो बढ़ती ताकतों को आपस में लड़ा दिया जाए जिससे उसके अरबों खरबों के हथियार बिकेंगे और सुपर पावर बनने से एशिया वंचित हो जायेगा।
एशिया में दो बड़ी ताकतें चीन और भारत ही हैं। चीन के अख़बारों में भी यह बात को लेकर काफी चर्चा और आलेख लिखे जा रहे हैं जिसमे भारत की मीडिया को पश्चिमी परस्त न होने का सुझाव भी दिया जा रहा है। ग्लोबल टाइम्स में भारत की मीडिया को 19 मई को एक लेख भी प्रकाशित हुआ है जिसमे यह उल्लेख किया गया है कि भारतीय मीडिया को पश्चिमी परस्त नहीं होना चाहिए क्योकि पश्चिम देश से भारत को कोई वास्तविक लाभ होने वाला नहीं है। पश्चिमी ताकतें चीन और भारत के बीच दुश्मनी बढ़ने के लिए हर तरह से साजिश रच रही है। भारतीय मीडिया को चीन को लेकर गलत फहमी पैदा करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
भारतीय मीडिया को चीन के बारे में अपनी समझ को बढ़ाना चाहिए और चीन पर अधिक संतुलित कवरेज पर काम करना चाहिए और रचनात्मक संबंध बनाने में मदद करनी चाहिए। यह भी आशा है कि वे भारतीय मीडिया पश्चिमी प्रभाव को झटका दे सकते हैं और स्वतंत्र रूप से सोच सकते हैं ताकि वे भारत के हितों को बनाए रख सकें।
3rd June, 2020