राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- प्रियंका गांधी वाड्रा जिस तरह से कोरोना वायरस के संकट में सियासत की है उसे तत्काल प्रभाव से मीडिया में पब्लिसिटी मिली और कांग्रेस के समर्थकों में उत्साह भी जगा लेकिन इसका फायदा उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिल पाएगा ऐसा कहना बहुत उचित नहीं है। हां, इतना जरूर है कि प्रियंका ने जिस तरह से कोरोना वायरस में बसों की सियासत की उससे कांग्रेस चर्चा में रही। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लल्लू जेल गए। जेल जाने के बाद से उत्तर प्रदेश में प्रियंका, राहुल और कांग्रेस के नेताओं की बयानबाजी होती रही। कोई ऐसा सकारात्मक आंदोलन नहीं कर पाए जोकि सरकार की गलतियों को जनता के बीच ला सकते। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि प्रियंका गांधी घटना को उठाती हैं मौके पर जाती भी हैं। दो-तीन दिनों तक मीडिया में खबरें भी जोर शोर से छपती हैं लेकिन घटनाओं पर की जा रही सियासत का फॉलोअप करने का कोई रणनीति या योजना कांग्रेस के पास नहीं है।
जिसके कारण कांग्रेस और प्रियंका का मुहिम हमेशा फेल हो जा रही है। कोरोना वायरस में सरकार ने गलतियों पर गलतियां की है लेकिन विपक्ष भी सरकार की गलतियों पर जनहित में कोई आंदोलन का रूप नहीं दे पाया। कांग्रेस चाहे केंद्र में हो या प्रदेश में, केवल टि्वटर और बयानों तक सीमित रही। राहुल गांधी ने मजदूरों के बीच जाकर उनसे सीधी बाता करके एक बेहतर प्रयास किया। जिसकी काफी चर्चा भी हुई और सरकार दबाव में भी आई लेकिन इतने भर से यह काम चलने वाला नहीं है अगर हम उत्तर प्रदेश को सियासत का केंद्र बिंदु माने जहां पर 2022 में चुनाव होने हैं और कमान प्रियंका के हाथ में है तो जिस तरह से प्रियंका ने कोरोना वायरस में सियासत की है उससे 2022 में बहुत ज्यादा लाभ मिलने के आसार नहीं है। कांग्रेस अगर यह बताना चाहती है कि वह मजदूरों के हित में है लॉकडाउन में जो छात्र फंसे हैं उनकी मदद करना चाहती है तो उसको व्यवहारी रूप से अमलीजामा पहनाना चाहिए।
जिस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी बसों को कोटा में बच्चों को लाने के लिए भेजा था उसी समय प्रियंका को हस्तक्षेप करके राजस्थान सरकार से बिना किराया लिए उत्तर प्रदेश के छात्रों को राजस्थान की निगम बसों से उनके घरों तक पहुंचाने का कार्य करना चाहिए। इसी तरह जो मजदूर कांग्रेस शासित राज्यों में फंसे थे उन मजदूरों को भी सरकारी वाहनों के माध्यम से उत्तर प्रदेश और बिहार जहां चुनाव होने हैं उन राज्यों तक भेजने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अवसर पर अवसर कांग्रेस खोती गई। प्रियंका गांधी का भी ग्राफ लोकसभा चुनाव के बाद अमेठी चुनाव हारने से काफी गिरा है यह जरूर माना जाता है कि प्रियंका एक करिश्माई, निडर और जुझारू नेता है लेकिन टीम चयन बहुत ही खराब और बुजुर्ग तथा युवाओं एवं कांग्रेस के पुराने दिग्गजों और नए नेताओं के बीच तालमेल करने की क्षमता का अभाव प्रियंका में फिलहाल अभी तक साफ़ दिखाई दे रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रियंका गांधी वाड्रा सियासत का एक बहुत बड़ा नाम है जिसमें करिश्माई व्यक्तित्व है लेकिन जमीनी हकीकत के आधार पर चरणबद्ध कार्य योजना बनाने की क्षमता न होने के कारण कांग्रेस अवसर पर अवसर गंवाती जा रही है। कांग्रेस को समझना चाहिए कि अब युवा पीढ़ी नेहरू गांधी परिवार पर भावनात्मक रूप से जुड़ाव रखने वाली नहीं रह गई है। उसे रोजगार चाहिए, सम्मान चाहिए और हर तरह से मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति चाहिए। साथ ही जाति और धर्म में बैठे हुए मतदाताओं को उनके जातीय आधार पर नेताओं को महत्व मिलना चाहिए। कांग्रेस के पास अभी अवसर और ऑप्शन दोनों है। जमीनी हकीकत क्या है और कैसे किस तरह से सरकार की खामियों को उजागर करने के लिए स्थानीय, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर त्रिस्तरीय योजना बनाई जाती है और उस पर निर्भर करेगा कि 2022 का चुनाव परिणाम में कांग्रेसी कहां खड़ी होगी। फिलहाल अभी तक प्रियंका गांधी की कोरोना सियासत व अन्य तरीके के जो भी सियासत की है वह केवल दो-चार दिनों तक मीडिया में चर्चा होने तक सीमित रह गई है।
जिसके कारण कांग्रेस और प्रियंका का मुहिम हमेशा फेल हो जा रही है। कोरोना वायरस में सरकार ने गलतियों पर गलतियां की है लेकिन विपक्ष भी सरकार की गलतियों पर जनहित में कोई आंदोलन का रूप नहीं दे पाया। कांग्रेस चाहे केंद्र में हो या प्रदेश में, केवल टि्वटर और बयानों तक सीमित रही। राहुल गांधी ने मजदूरों के बीच जाकर उनसे सीधी बाता करके एक बेहतर प्रयास किया। जिसकी काफी चर्चा भी हुई और सरकार दबाव में भी आई लेकिन इतने भर से यह काम चलने वाला नहीं है अगर हम उत्तर प्रदेश को सियासत का केंद्र बिंदु माने जहां पर 2022 में चुनाव होने हैं और कमान प्रियंका के हाथ में है तो जिस तरह से प्रियंका ने कोरोना वायरस में सियासत की है उससे 2022 में बहुत ज्यादा लाभ मिलने के आसार नहीं है। कांग्रेस अगर यह बताना चाहती है कि वह मजदूरों के हित में है लॉकडाउन में जो छात्र फंसे हैं उनकी मदद करना चाहती है तो उसको व्यवहारी रूप से अमलीजामा पहनाना चाहिए।
जिस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी बसों को कोटा में बच्चों को लाने के लिए भेजा था उसी समय प्रियंका को हस्तक्षेप करके राजस्थान सरकार से बिना किराया लिए उत्तर प्रदेश के छात्रों को राजस्थान की निगम बसों से उनके घरों तक पहुंचाने का कार्य करना चाहिए। इसी तरह जो मजदूर कांग्रेस शासित राज्यों में फंसे थे उन मजदूरों को भी सरकारी वाहनों के माध्यम से उत्तर प्रदेश और बिहार जहां चुनाव होने हैं उन राज्यों तक भेजने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अवसर पर अवसर कांग्रेस खोती गई। प्रियंका गांधी का भी ग्राफ लोकसभा चुनाव के बाद अमेठी चुनाव हारने से काफी गिरा है यह जरूर माना जाता है कि प्रियंका एक करिश्माई, निडर और जुझारू नेता है लेकिन टीम चयन बहुत ही खराब और बुजुर्ग तथा युवाओं एवं कांग्रेस के पुराने दिग्गजों और नए नेताओं के बीच तालमेल करने की क्षमता का अभाव प्रियंका में फिलहाल अभी तक साफ़ दिखाई दे रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रियंका गांधी वाड्रा सियासत का एक बहुत बड़ा नाम है जिसमें करिश्माई व्यक्तित्व है लेकिन जमीनी हकीकत के आधार पर चरणबद्ध कार्य योजना बनाने की क्षमता न होने के कारण कांग्रेस अवसर पर अवसर गंवाती जा रही है। कांग्रेस को समझना चाहिए कि अब युवा पीढ़ी नेहरू गांधी परिवार पर भावनात्मक रूप से जुड़ाव रखने वाली नहीं रह गई है। उसे रोजगार चाहिए, सम्मान चाहिए और हर तरह से मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति चाहिए। साथ ही जाति और धर्म में बैठे हुए मतदाताओं को उनके जातीय आधार पर नेताओं को महत्व मिलना चाहिए। कांग्रेस के पास अभी अवसर और ऑप्शन दोनों है। जमीनी हकीकत क्या है और कैसे किस तरह से सरकार की खामियों को उजागर करने के लिए स्थानीय, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर त्रिस्तरीय योजना बनाई जाती है और उस पर निर्भर करेगा कि 2022 का चुनाव परिणाम में कांग्रेसी कहां खड़ी होगी। फिलहाल अभी तक प्रियंका गांधी की कोरोना सियासत व अन्य तरीके के जो भी सियासत की है वह केवल दो-चार दिनों तक मीडिया में चर्चा होने तक सीमित रह गई है।
3rd June, 2020