यूरीड मीडिया-प्रियंका वाड्रा को जबसे उत्तर प्रदेश की कमान मिली है कांग्रेस अमेठी जैसे संसदीय क्षेत्र जिसे हम गाँधी परिवार का मूलधन कहते है वह भी खो चुकी है। रायबरेली संसदीय क्षेत्र पर पूरी तरह से ग्रहण लग चूका है। संसदीय क्षेत्र से जीते हुए दो बड़े राजनीतिक घराने दिनेश सिंह और स्वर्गीय अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह कांग्रेस का दामन छोड़ चुके है। ऐसे में अमेठी की तरह रायबरेली भी 2024 में गाँधी परिवार के पास रहेगा, इस पर भी सवाल उठना शुरू हो गया है। प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में संघर्षशील, जुझारू छवि वाले अजय कुमार लल्लू को कमान सौपी है। इसका सीधा मतलब है कि प्रदेश के जीत-हार, उत्थान-पतन की सीधी जिम्मेदारी प्रियंका वाड्रा की ही होगी। पहले चरण लोकसभा चुनाव में प्रियंका वाड्रा पूरी तरह फेल हो चुकी है और जिस तरह से नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गाँधी ने एक स्वच्छ राजनीति का उदाहरण प्रस्तुत किया उनकी तुलना में प्रियंका कही नहीं ठहरती। अगर राहुल गाँधी राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अपेक्षित परिणाम न आने पर नैतिक जिम्मेदारी लेते है तो प्रियंका वाड्रा को भी उत्तर प्रदेश की शर्मनाक हार के लिए जिम्मेदारी जरूर लेनी चाहिए। जिस तरह प्रियंका वाड्रा सियासत कर रही उससे जनता में उनकी छवि बहुत अच्छी नहीं बन रही है। पार्टी में लल्लू टीम के नेतृत्व में जिन्हे जिम्मेदारी दी गयी है वह सभी अननोन चेहरे हैं। पार्टी के बड़े नेता और कार्यकर्ता भी लल्लू टीम के 41पदाधिकारियों के बारे में नहीं जानते हैं। यह 41 सदस्यीय टीम प्रियंका ने लल्लू के माध्यम से कैसे खोजी है कहाँ से लाई और क्या परिणाम आएंगे ? इसका जवाब समय देगा लेकिन जिस तर्ज़ पर राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में युवा कांग्रेस, छात्र संगठन को लगभग समाप्त कर चुके हैं उसी तरह का प्रयोग प्रियंका वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस संगठन को लेकर किया है। लल्लू बेहद ईमानदार संघर्षशील नेता है लेकिन वर्तमान राजनीतिक समीकरण में किसी जातीय समीकरण में फिट नहीं हो रहे है। उत्तर प्रदेश जहाँ पर जाति और धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों में होड़ और वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी हुई है ऐसे में प्रियंका की दूसरी पारी विधानसभा के चुनाव के लिए कर रही सियासत को राजनीतिक विश्लेषक और पार्टी के नेता कार्यकर्ता भी अच्छा संकेत नहीं मानते हैं। यह सही है कि देश में विशेषकर उत्तर प्रदेश में विपक्ष की भूमिका की जगह काफी खाली दिखाई दे रही लेकिन उनकी भरपाई प्रियंका वाड्रा की रणनीति और लल्लू टीम के सहारे संभव होता कम ही दिखाई दे रहा है। हाँ एक स्थित जरूर बन सकती है जब प्रियंका वाड्रा राष्ट्रीय महासचिव नहीं उत्तर प्रदेश में भावी मुख्यमंत्री के रूप में अपने को आगे करते हुए 24 घंटे उत्तर प्रदेश में रहे और प्रभावी विपक्ष की भूमिका में जमीनी स्तर पर कार्य करें तो हो सकता है कि लल्लू जैसे संघर्षशील नेता की टीम प्रियंका के साथ मिलकर कर विपक्ष की भूमिका में जनता का विश्वास जीत सके।
जिस तरह से प्रदेश भर के बड़े नेताओ को प्रियंका ने सम्मान देकर अपने साथ सलाहकार और प्लानिंग टीम में जोड़ा है अगर प्रियंका लखनऊ में निरंतर प्रवास करें और कांग्रेस की अनुभवी टीम अपने अनुभव को ईमानदारी से लल्लू जैसे संघर्ष करने वाले टीम के साथ जुड़कर आगे बढे तो राजनीति है सब कुछ संभव है और आज जो प्रियंका को लेकर सवाल उठ रहे है शायद उसका जवाब भी जनता के द्वारा मिल जाये।
जिस तरह से प्रदेश भर के बड़े नेताओ को प्रियंका ने सम्मान देकर अपने साथ सलाहकार और प्लानिंग टीम में जोड़ा है अगर प्रियंका लखनऊ में निरंतर प्रवास करें और कांग्रेस की अनुभवी टीम अपने अनुभव को ईमानदारी से लल्लू जैसे संघर्ष करने वाले टीम के साथ जुड़कर आगे बढे तो राजनीति है सब कुछ संभव है और आज जो प्रियंका को लेकर सवाल उठ रहे है शायद उसका जवाब भी जनता के द्वारा मिल जाये।
10th October, 2019