लखनऊ, यूरिड मीडिया न्यूज।
तुलसीदास जी ने लिखा है कि-
जेहि पर कृपा राम कर होई, तापर कृपा करहि सब कोई ।
तुलसीदास जी के इस दोहे के सन्दर्भ में ऐसा लगता है कि रामचंद्र जी की कृपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ही है क्योकि वर्तमान में अयोध्या में राममंदिर आंदोलन चलाने वाले बड़े बड़े नेता खो गये है। लगता है उन्हें राम की कृपा नहीं मिल पायी है। 17 अक्टूबर-2019 को उच्चतम न्यायालय राममंदिर विवाद पर सुनवाई पूरी करके 18 नवबंर 2019 तक अपना फैसला देे देगा लेकिन इस बीच एक सवाल जरूर जनमानस में उठ रहा है आखिर तीन दशक तक लगातार मंदिर बनाने की मुहिम चलाने वाले भाजपा के बड़े-बड़े नेता कहा खो गये। जिस हिन्दुत्व एजेन्डे के भरोसे भारतीय जनता पार्टीं देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी और देश उत्तर प्रदेश सहित 80 प्रतिशत भू-भाग पर भाजपा का झंडा लहरा रहा है। ऐसे समय में वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमाभारती और विनय कटियार गायब हो गये। राजनीतिक कारणों से और जातीय महत्व को देखते हुए इकलौते नेता कल्याण सिंह और उनके परिवार को मोदी सरकार में महत्व मिला है। कल्याण सिंह की तीन पीढ़ी मोदी के आशीर्वाद से सत्ता में है लेकिन राम का आशीर्वाद पाने की लालसा में मंदिर बनवाने के मुहिम चलाने वाले नेता खो गये। हमे याद है विनय कटियार बंजरंगदल, नेता के रूप में अखबार के कार्यालयों में प्रेस नोट लेकर मंदिर मुहिम के एजेन्डों को छपवाने के लिए आया करते थे। लगातार संघर्ष करते रहे आज उनका नाम लेने वाला कोई नही है। कटियार इस अपार बहुमत सरकारों में दूसरे दलों के अवसरवादी नेताओं जिन्हें भाजपा ने शामिल करके बड़े-बड़े पद दिये गये उनकी तुलना में विनय कटियार का महत्व खत्म हो गया। एक समय था जब विनय कटियार अयोध्या आंदोलन के बजरंग दल के रूप में एक प्रर्याय बन गये थे। उमा भारती जिन्होने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ सीधा हमला बोलती रही अयोध्या, रामलला मंदिर बनवाने के लिए पूरी तरह से आंदोलन में समर्पित रही आज राजनीतिक पर्रिदृश्य से गायब है।
लालकृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, जो भाजपा के संस्थापक नेताओं में शामिल है। दोनों नेताओं की नैतिकता एक उदाहरण है याद है 1996 में जैन डायरी के मामले में लालकृष्ण आडवानी का नाम आने के बाद उन्होने नैतिकता के नाते चुनाव लड़ने से मना कर दिया था और कहा था कि जब तक जैन डायरी के मामले की जांच पूरी नही होगी वह राजनीति में सक्रिय भूमिका नहीं निभायेगें। जैनडायरी में क्लीन चिट मिलने के बाद आडवानी ने 1998 में लोकसभा का चुनाव लड़ा। मंदिर मुहिम को आगे बढ़ाने हिन्दुत्व एजेन्डों को जनमानस में पहुंचाने के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक की लम्बी यात्रा की जिसका अप्रत्याशित लाभ भाजपा को मिला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 303 नहीं 503 सांसदों के प्रधानमंत्री बन जाय लेकिन आडवानी, जोशी की उपेक्षा को इतिहास के पन्नों में दर्ज होने से नही मिटा सकते। मोदी के सफलताओं की लम्बी लकीर में आडवानी और जोशी जैसे बुजुर्गों की उपेक्षा के धब्बे मजबूती से जरूर दिखायी देंगे।आज भाजपा के संघ और विहिप के बड़े-बड़े नेता भी महसूस कर रहे है कि आडवानी, जोशी और मंदिर की अगुवाई करने वाले नेताओं विनय कटियार, उमाभारती की उपेक्षा उचित नही है।
यह सही है कि मोदी एक सफलतम प्रधानमंत्री और विश्व के लोकप्रिय नेताओं में शामिल है। आज विपक्ष की कमजोरियां के कारण सफलताएं मोदी का कदम चुम रही है। जिन एजेन्डों को लेकर दीनदयाल उपाध्याय ने सपना देखा था वह धीरे-धीरे पूरे हो रहे है। धारा 370 एवं 35 ए जम्मू कश्मीर से हटा करके एक साहसिक कदम उठाया हैं। अयोध्या विवाद भी लगभग अंतिम चरण में चल रहा है उम्मीद है यह भी जल्दी हल हो जायेगा। संघ और विहिप के एजेन्डे पूरे हो रहे है विहिप नेता अशोक सिंहल जिन्होने पूरा जीवन हिन्दुत्व एजेन्डों को बढ़ाने और अयोध्या मुद्दे को देश में ही नही पूरी दुनिया में हिन्दुओं के जनभावना से जोड़ने में सफल रहे। अयोध्या में मंदिर बनने से उनकी आत्मा को शांति मिलेगी और उन्हें बहुत बड़ी श्रद्धांजली भी होगी। लेकिन एक सवाल जनमानस में जरूर तैर रहा है कि भारतीय संस्कृत में बुजुर्गाे की उपेक्षा मान्य नही है। बुजुर्गाे का सम्मान भारतीय संस्कृति की एक बहुत बड़ी धरोहर है। संघ और विहिप को भी यह सोचना चाहिए भारतीय संस्कृति के अनुसार क्या आडवानी,जोशी जैसे भाजपा परिवार के मुखिया रहे, उनको सम्मान मिल रहा। ऐसा नही है। जब आम जनता के निगाह में राममंदिर के मुहिम चलाने वाले नेता उपेक्षित दिखायी दे रहे है तो संघ और विहिप के प्रबुद्ध नेतृत्वकर्ता को भी आडवानी जोशी की उपेक्षा का एहसास जरूर होगा। चैनलों और ए.सी. कमरों में बैठकर भाषण करने वाले राकेश सिन्हा और सुधांशु त्रिवेदी को राज्यसभा भेज दिया गया लेकिन विनय कटियार और उमाभारती जैसे नेता आज भी उपेक्षा के शिकार है।
भारत रत्न पाने वाले नेताओं को देखें तो उनका योग्यदान आडवानी और जोशी से बहुत कम है लेकिन किन कारणों से उन्हें भारत रत्न दिया गया यह भी राजनीतिक चश्मे का बहुत बड़ा उदाहरण है भारत रत्न एक सम्मानित पुरस्कार है इसलिए भारत रत्न पाने वालों का नाम तो हम उल्लेख नही कर रहे है, लेकिन जब उन नामो को आडवानी, जोशी के नामों से तुलना की जायेगी तो यह जरूर लगेगा कि मोदी सरकार ने इन बुजुर्गाे के साथ इंसाफ नही किया गया। सफलता पाने वाले को यह जरूर देखना चाहिए कि सफलता के रास्ते में मिल के पत्थर बने लोगों की उपेक्षा न हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योग्य और सफलतम व्यक्ति है लेकिन उन्हें अपने विरोधी दल कांग्रेस से इतना जरूर सीखना चाहिए कि इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक कांग्रेस के प्रति समर्पित बड़े बुजुर्ग नेताओं की उपेक्षा और अपमानित न किया होता तो शायद कांग्रेस की इतनी दुर्दशा नही होती।
मेरे कहने का मतलब यही है कि मोदी अपने सफलताओं में राममंदिर और हिन्दुत्व एजोंडों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका अदा करने वाले देश भर के नेताओं और कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान देना चाहिए। सत्ता आती है जाती है से लेकर राहुलगांधी तक का उदाहरण सामने है। काँग्रेस उदाहरण है कि नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने वाली कांग्रेस 415 सीट मिलने के बाद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसे वर्तमान जैसे दुर्दिन से गुजरना पड़ेगा। विपक्ष बनने तक की संख्या नहीं मिल पाएगी। इतिहास गवाह है समय जरूर लगता है लेकिन प्रकृति गलतियों और अहंकार में जीने वालों को कभी माफ नहीं करती। समय पर हिसाब जरूर करती है। वर्तमान में अगर देखे तो एक दशक पहले पी चिदंबरम गृह मंत्री थे तब अमित शाह जेल में थे। आज अमित शाह गृह मंत्री है पी चिदंबरम जेल में है अंत में राम मंदिर की अगुवाई करने वाली उपेक्षित नेताओ को गोस्वामी तुलसी दास के इस संवाद पर भरोसा करना चाहिए जिसमे तुलसीदास के एक प्रसंग में भगवान शंकर पार्वती से कहते है-
बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ।
जेहि क्षण रघुपति जस करें तहि क्षण तैसे होई।।
दुनिया में न कोई ज्ञानी है न मुर्ख। भगवान् राम जब जिसको जैसा करते है वह उसी क्षण से वैसा ही हो जाता है।
तुलसीदास जी ने लिखा है कि-
जेहि पर कृपा राम कर होई, तापर कृपा करहि सब कोई ।
तुलसीदास जी के इस दोहे के सन्दर्भ में ऐसा लगता है कि रामचंद्र जी की कृपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ही है क्योकि वर्तमान में अयोध्या में राममंदिर आंदोलन चलाने वाले बड़े बड़े नेता खो गये है। लगता है उन्हें राम की कृपा नहीं मिल पायी है। 17 अक्टूबर-2019 को उच्चतम न्यायालय राममंदिर विवाद पर सुनवाई पूरी करके 18 नवबंर 2019 तक अपना फैसला देे देगा लेकिन इस बीच एक सवाल जरूर जनमानस में उठ रहा है आखिर तीन दशक तक लगातार मंदिर बनाने की मुहिम चलाने वाले भाजपा के बड़े-बड़े नेता कहा खो गये। जिस हिन्दुत्व एजेन्डे के भरोसे भारतीय जनता पार्टीं देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी और देश उत्तर प्रदेश सहित 80 प्रतिशत भू-भाग पर भाजपा का झंडा लहरा रहा है। ऐसे समय में वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमाभारती और विनय कटियार गायब हो गये। राजनीतिक कारणों से और जातीय महत्व को देखते हुए इकलौते नेता कल्याण सिंह और उनके परिवार को मोदी सरकार में महत्व मिला है। कल्याण सिंह की तीन पीढ़ी मोदी के आशीर्वाद से सत्ता में है लेकिन राम का आशीर्वाद पाने की लालसा में मंदिर बनवाने के मुहिम चलाने वाले नेता खो गये। हमे याद है विनय कटियार बंजरंगदल, नेता के रूप में अखबार के कार्यालयों में प्रेस नोट लेकर मंदिर मुहिम के एजेन्डों को छपवाने के लिए आया करते थे। लगातार संघर्ष करते रहे आज उनका नाम लेने वाला कोई नही है। कटियार इस अपार बहुमत सरकारों में दूसरे दलों के अवसरवादी नेताओं जिन्हें भाजपा ने शामिल करके बड़े-बड़े पद दिये गये उनकी तुलना में विनय कटियार का महत्व खत्म हो गया। एक समय था जब विनय कटियार अयोध्या आंदोलन के बजरंग दल के रूप में एक प्रर्याय बन गये थे। उमा भारती जिन्होने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ सीधा हमला बोलती रही अयोध्या, रामलला मंदिर बनवाने के लिए पूरी तरह से आंदोलन में समर्पित रही आज राजनीतिक पर्रिदृश्य से गायब है।
लालकृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, जो भाजपा के संस्थापक नेताओं में शामिल है। दोनों नेताओं की नैतिकता एक उदाहरण है याद है 1996 में जैन डायरी के मामले में लालकृष्ण आडवानी का नाम आने के बाद उन्होने नैतिकता के नाते चुनाव लड़ने से मना कर दिया था और कहा था कि जब तक जैन डायरी के मामले की जांच पूरी नही होगी वह राजनीति में सक्रिय भूमिका नहीं निभायेगें। जैनडायरी में क्लीन चिट मिलने के बाद आडवानी ने 1998 में लोकसभा का चुनाव लड़ा। मंदिर मुहिम को आगे बढ़ाने हिन्दुत्व एजेन्डों को जनमानस में पहुंचाने के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक की लम्बी यात्रा की जिसका अप्रत्याशित लाभ भाजपा को मिला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 303 नहीं 503 सांसदों के प्रधानमंत्री बन जाय लेकिन आडवानी, जोशी की उपेक्षा को इतिहास के पन्नों में दर्ज होने से नही मिटा सकते। मोदी के सफलताओं की लम्बी लकीर में आडवानी और जोशी जैसे बुजुर्गों की उपेक्षा के धब्बे मजबूती से जरूर दिखायी देंगे।आज भाजपा के संघ और विहिप के बड़े-बड़े नेता भी महसूस कर रहे है कि आडवानी, जोशी और मंदिर की अगुवाई करने वाले नेताओं विनय कटियार, उमाभारती की उपेक्षा उचित नही है।
यह सही है कि मोदी एक सफलतम प्रधानमंत्री और विश्व के लोकप्रिय नेताओं में शामिल है। आज विपक्ष की कमजोरियां के कारण सफलताएं मोदी का कदम चुम रही है। जिन एजेन्डों को लेकर दीनदयाल उपाध्याय ने सपना देखा था वह धीरे-धीरे पूरे हो रहे है। धारा 370 एवं 35 ए जम्मू कश्मीर से हटा करके एक साहसिक कदम उठाया हैं। अयोध्या विवाद भी लगभग अंतिम चरण में चल रहा है उम्मीद है यह भी जल्दी हल हो जायेगा। संघ और विहिप के एजेन्डे पूरे हो रहे है विहिप नेता अशोक सिंहल जिन्होने पूरा जीवन हिन्दुत्व एजेन्डों को बढ़ाने और अयोध्या मुद्दे को देश में ही नही पूरी दुनिया में हिन्दुओं के जनभावना से जोड़ने में सफल रहे। अयोध्या में मंदिर बनने से उनकी आत्मा को शांति मिलेगी और उन्हें बहुत बड़ी श्रद्धांजली भी होगी। लेकिन एक सवाल जनमानस में जरूर तैर रहा है कि भारतीय संस्कृत में बुजुर्गाे की उपेक्षा मान्य नही है। बुजुर्गाे का सम्मान भारतीय संस्कृति की एक बहुत बड़ी धरोहर है। संघ और विहिप को भी यह सोचना चाहिए भारतीय संस्कृति के अनुसार क्या आडवानी,जोशी जैसे भाजपा परिवार के मुखिया रहे, उनको सम्मान मिल रहा। ऐसा नही है। जब आम जनता के निगाह में राममंदिर के मुहिम चलाने वाले नेता उपेक्षित दिखायी दे रहे है तो संघ और विहिप के प्रबुद्ध नेतृत्वकर्ता को भी आडवानी जोशी की उपेक्षा का एहसास जरूर होगा। चैनलों और ए.सी. कमरों में बैठकर भाषण करने वाले राकेश सिन्हा और सुधांशु त्रिवेदी को राज्यसभा भेज दिया गया लेकिन विनय कटियार और उमाभारती जैसे नेता आज भी उपेक्षा के शिकार है।
भारत रत्न पाने वाले नेताओं को देखें तो उनका योग्यदान आडवानी और जोशी से बहुत कम है लेकिन किन कारणों से उन्हें भारत रत्न दिया गया यह भी राजनीतिक चश्मे का बहुत बड़ा उदाहरण है भारत रत्न एक सम्मानित पुरस्कार है इसलिए भारत रत्न पाने वालों का नाम तो हम उल्लेख नही कर रहे है, लेकिन जब उन नामो को आडवानी, जोशी के नामों से तुलना की जायेगी तो यह जरूर लगेगा कि मोदी सरकार ने इन बुजुर्गाे के साथ इंसाफ नही किया गया। सफलता पाने वाले को यह जरूर देखना चाहिए कि सफलता के रास्ते में मिल के पत्थर बने लोगों की उपेक्षा न हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योग्य और सफलतम व्यक्ति है लेकिन उन्हें अपने विरोधी दल कांग्रेस से इतना जरूर सीखना चाहिए कि इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक कांग्रेस के प्रति समर्पित बड़े बुजुर्ग नेताओं की उपेक्षा और अपमानित न किया होता तो शायद कांग्रेस की इतनी दुर्दशा नही होती।
मेरे कहने का मतलब यही है कि मोदी अपने सफलताओं में राममंदिर और हिन्दुत्व एजोंडों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका अदा करने वाले देश भर के नेताओं और कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान देना चाहिए। सत्ता आती है जाती है से लेकर राहुलगांधी तक का उदाहरण सामने है। काँग्रेस उदाहरण है कि नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने वाली कांग्रेस 415 सीट मिलने के बाद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसे वर्तमान जैसे दुर्दिन से गुजरना पड़ेगा। विपक्ष बनने तक की संख्या नहीं मिल पाएगी। इतिहास गवाह है समय जरूर लगता है लेकिन प्रकृति गलतियों और अहंकार में जीने वालों को कभी माफ नहीं करती। समय पर हिसाब जरूर करती है। वर्तमान में अगर देखे तो एक दशक पहले पी चिदंबरम गृह मंत्री थे तब अमित शाह जेल में थे। आज अमित शाह गृह मंत्री है पी चिदंबरम जेल में है अंत में राम मंदिर की अगुवाई करने वाली उपेक्षित नेताओ को गोस्वामी तुलसी दास के इस संवाद पर भरोसा करना चाहिए जिसमे तुलसीदास के एक प्रसंग में भगवान शंकर पार्वती से कहते है-
बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ।
जेहि क्षण रघुपति जस करें तहि क्षण तैसे होई।।
दुनिया में न कोई ज्ञानी है न मुर्ख। भगवान् राम जब जिसको जैसा करते है वह उसी क्षण से वैसा ही हो जाता है।
9th October, 2019