लखनऊ, यूरिड मीडिया न्यूज। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की राजनीति को नई दिशा दी है। जाति एवं धर्म की सियासत करने वाले को मोदी की गरीबों के प्रति समर्पण हेतु चेतावनी और सोच बदलने का अवसर दिया है। जो नेता जातिये और धार्मिक ध्रुवीकरण को केंद्र बिन्दु में रखकर राजनीति करते थे उन्हें करारा झटका लगा है। नतीजे चैकाने वाले है और मोदी के नाम पर ही सांसद चुने गये है। अभी तक सांसद प्रधानमंत्री का चयन करते थे लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर जनता ने सांसदों को चुना है। 2014 से अधिक सांसद चुने जाने के बाद सरकार के मुखिया के रूप मोदी को और बेहतर परिणाम देने होंगे। जन-आकाक्षांओं पर खरा उतरना पड़ेगा। जिस तरह से चुनाव में सामाजिक तनाव बना हुआ था वह माहौल रहेगा या मोदी ऐसे सामाजिक ताने बाने को प्रभावित करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने में सफल होंगे। 300 से अधिक सांसद देकर जनता ने मोदी के लिए चुनौती और बढ़ा दी है मोदी के लिए जन-आकाक्षांओं पर खरा उतरना बहुत आसान नही होगा। विवादस्पद मामले कैसे हल करेंगे यह भी मोदी के लिए चुनौती है।
दूसरी तरफ देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी कांग्रेस के लिए भी आत्मचिंतन का समय है। अध्यक्ष राहुल गांधी क्या रणनीति अपनायेंगे या फिर अपने इर्द-गिर्द गणेश परिक्रमा करने वाले नेताओं के सलाह पर सियासत करेंगे। यह आने वाला समय तय करेंगा। मायावती-अखिलेश का जातिवादी समीकरण अगर उत्तर प्रदेश में असफल हुआ तो क्या यह नया शुभसंकेत है? क्यो देश राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश ,तेजस्वी या इन कुल भावी योग को 25 लाख करोड़ रूपये के बजट वाले भारत की बागडोर नहीं देना चाहता था? कांग्रेस ने तो घोषणापत्र में हर गरीब को 72,000 रूपये सालाना तक देने का वादा किया था। फिर भी मोदी सरकार ने 2-2 हजार रूपये की मात्र दो किस्त देकर उसे कैसे अपने पाले में कर लिया। क्या कांग्रेस के पास इस संदेश को भेजने के लिए प्रतिबद्ध कैडर नही था। शायद राहुल गांधी को अभी आज है कल नही के भाव से राजनीति को लेने का तरीका बदलना होगा। कांग्रेस के वर्तमान नेताओं पर लोगों को स्वतः विश्वास नही उमड़ता जो नेहरू- इंदिरा पर था या आज अकेले नरेंद्र मोदी पर है। जनता को जब यह पता चला कि चुनाव खत्म होने के बाद कांग्रेस के कई युवा नेता यूरोप-अमेरिका की सैर को निकल गए है तो लगा कि इनके लिए चुनाव भी किशोरावस्था वाले लेट अस हैव फन टाइप का है और वह फन खत्म हुआ तो अब नए फन के लिए विदेश चले गए जबकि चुनाव प्रचार में दिन-रात एक करने वाले 68 वर्षीय नरेंद्र मोदी केदारनाथ की गुंफा में साधना करने गए तो मीडिया ने पूरे दिन दिखाया। अगर राहुल भी उत्तराखंड के किसी गांव में दो दिन के लिए किसी दलित के घर में आध्यमित्मक शाति के लिए गये होते तो मीडिया उसे भी उसी शिद्दत से दिखाता। यहीं से वह अंतर शुरू होता है। मोदी को जनता अपनी संस्कृति के नजदीक पाती है और राहुल के प्रति पाश्चात्य संभ्रांत संस्कृति के अभिजात्य लाडले का भाव बना हुआ है हांलाकि इसे खत्म करने की राहुल ने पिछले दो साल में कोशिश की है।
बहरहाल जनता ने यह सिद्द कर दिया कि मोदी पर पांच साल बाद भी भरोसा है। ऐसा नहीं कि विगत पांच साल में बगैर कुछ हुए यह विश्वास बना रहा। विकास दो तरह के होते है सीधी डिलीवरी देकर तात्कालिक कमियों को पूरा करना या राहत मुहैया कराना जैसे उज्जवला योजना किसानों को 2,000 रूपये की दो किस्ते तत्काल देना। इन्हें कोई भी सक्षम सरकार अपने कार्यकाल के पहले तीन सालों में पूरी तरह उपलब्ध करा सकती है व्यापक जन-संचार माध्यम के जरिये इसका अहसास भी दिला सकती है। मोदी ने यह किया लेकिन दीर्घकालिक विकास जैसे अंतर-संरचनात्मक विकास जिसमें सिंचाई, ऊर्जा, सड़क, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए संस्थागत ढांचे खड़ा करने, नए उद्योगों के लिए दक्ष मानव संसाधन का स्रोत तैयार करने में किसी भी सरकार के लिए दो शासनकाल जरूरी होता है। फिर उस किस्म के विकास में जिसमें सामान्य जन की सोच वैज्ञानिक बनाकर उन्हें सदियों पुरानी जीवनशैली या जीवनयापन के तरीकों के दोषों से हटाकर नई सोच और यंत्रों के इस्तेमाल की ओर ले जाने में भी एक लंबा समय लगता है मोदी सरकार के कार्यकाल में सड़के तीन गुनी रफ्तार से बनी, शौचालय बने, बिजली सुदुर गांव तक पहुंची। इन सब ने जनता को प्रभावित किया। नोटबंदी में हुए कष्ट से ज्यादा खुशी इस बात की रही कि भ्रष्ट, धनपशु, कुकर्मी अफसर फसेंगे।
मोदी सरकार की फसल बीमा योजना एक अद्भुद योजना थी लेकिन पिछले दो वर्षो में बीमा कवरेज लगातार गिरते हुए 2017 -18 में 30 से 24 प्रतिशत पर आ गया जबकि 2017-18 का लक्ष्य 50 प्रतिशत रखा गया था। एक अच्छी योजना के जन्म से ही बीमार होने का मूल कारण राज्य सरकारों का उनींदापन था।
दूसरी तरफ देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी कांग्रेस के लिए भी आत्मचिंतन का समय है। अध्यक्ष राहुल गांधी क्या रणनीति अपनायेंगे या फिर अपने इर्द-गिर्द गणेश परिक्रमा करने वाले नेताओं के सलाह पर सियासत करेंगे। यह आने वाला समय तय करेंगा। मायावती-अखिलेश का जातिवादी समीकरण अगर उत्तर प्रदेश में असफल हुआ तो क्या यह नया शुभसंकेत है? क्यो देश राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश ,तेजस्वी या इन कुल भावी योग को 25 लाख करोड़ रूपये के बजट वाले भारत की बागडोर नहीं देना चाहता था? कांग्रेस ने तो घोषणापत्र में हर गरीब को 72,000 रूपये सालाना तक देने का वादा किया था। फिर भी मोदी सरकार ने 2-2 हजार रूपये की मात्र दो किस्त देकर उसे कैसे अपने पाले में कर लिया। क्या कांग्रेस के पास इस संदेश को भेजने के लिए प्रतिबद्ध कैडर नही था। शायद राहुल गांधी को अभी आज है कल नही के भाव से राजनीति को लेने का तरीका बदलना होगा। कांग्रेस के वर्तमान नेताओं पर लोगों को स्वतः विश्वास नही उमड़ता जो नेहरू- इंदिरा पर था या आज अकेले नरेंद्र मोदी पर है। जनता को जब यह पता चला कि चुनाव खत्म होने के बाद कांग्रेस के कई युवा नेता यूरोप-अमेरिका की सैर को निकल गए है तो लगा कि इनके लिए चुनाव भी किशोरावस्था वाले लेट अस हैव फन टाइप का है और वह फन खत्म हुआ तो अब नए फन के लिए विदेश चले गए जबकि चुनाव प्रचार में दिन-रात एक करने वाले 68 वर्षीय नरेंद्र मोदी केदारनाथ की गुंफा में साधना करने गए तो मीडिया ने पूरे दिन दिखाया। अगर राहुल भी उत्तराखंड के किसी गांव में दो दिन के लिए किसी दलित के घर में आध्यमित्मक शाति के लिए गये होते तो मीडिया उसे भी उसी शिद्दत से दिखाता। यहीं से वह अंतर शुरू होता है। मोदी को जनता अपनी संस्कृति के नजदीक पाती है और राहुल के प्रति पाश्चात्य संभ्रांत संस्कृति के अभिजात्य लाडले का भाव बना हुआ है हांलाकि इसे खत्म करने की राहुल ने पिछले दो साल में कोशिश की है।
बहरहाल जनता ने यह सिद्द कर दिया कि मोदी पर पांच साल बाद भी भरोसा है। ऐसा नहीं कि विगत पांच साल में बगैर कुछ हुए यह विश्वास बना रहा। विकास दो तरह के होते है सीधी डिलीवरी देकर तात्कालिक कमियों को पूरा करना या राहत मुहैया कराना जैसे उज्जवला योजना किसानों को 2,000 रूपये की दो किस्ते तत्काल देना। इन्हें कोई भी सक्षम सरकार अपने कार्यकाल के पहले तीन सालों में पूरी तरह उपलब्ध करा सकती है व्यापक जन-संचार माध्यम के जरिये इसका अहसास भी दिला सकती है। मोदी ने यह किया लेकिन दीर्घकालिक विकास जैसे अंतर-संरचनात्मक विकास जिसमें सिंचाई, ऊर्जा, सड़क, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए संस्थागत ढांचे खड़ा करने, नए उद्योगों के लिए दक्ष मानव संसाधन का स्रोत तैयार करने में किसी भी सरकार के लिए दो शासनकाल जरूरी होता है। फिर उस किस्म के विकास में जिसमें सामान्य जन की सोच वैज्ञानिक बनाकर उन्हें सदियों पुरानी जीवनशैली या जीवनयापन के तरीकों के दोषों से हटाकर नई सोच और यंत्रों के इस्तेमाल की ओर ले जाने में भी एक लंबा समय लगता है मोदी सरकार के कार्यकाल में सड़के तीन गुनी रफ्तार से बनी, शौचालय बने, बिजली सुदुर गांव तक पहुंची। इन सब ने जनता को प्रभावित किया। नोटबंदी में हुए कष्ट से ज्यादा खुशी इस बात की रही कि भ्रष्ट, धनपशु, कुकर्मी अफसर फसेंगे।
मोदी सरकार की फसल बीमा योजना एक अद्भुद योजना थी लेकिन पिछले दो वर्षो में बीमा कवरेज लगातार गिरते हुए 2017 -18 में 30 से 24 प्रतिशत पर आ गया जबकि 2017-18 का लक्ष्य 50 प्रतिशत रखा गया था। एक अच्छी योजना के जन्म से ही बीमार होने का मूल कारण राज्य सरकारों का उनींदापन था।
24th May, 2019