ए0 के0 सिन्हा- यूरीड मीडिया-2014 के लोकसभा चुनाव में 'सबका साथ और सबका विकास' और 'अच्छे दिन' के नारों के पर जीत कर आने वाले मोदी आज अपनी जन सभाओं में कहते है कि मेरे फर्स्ट टाइम वोटरों क्या आपका वोट एयर स्ट्राइक करने वालों को मिल सकता है ? पुलवामा हमले के बाद नरेंद्र मोदी लगभग 80 छोटी बड़ी जनसभा कर चुके है और उन जनसभाओं में मोदी लगभग 60 प्रतिशत समय सेना पर 30 प्रतिशत समय कांग्रेस और विपक्ष पर तथा 10 प्रतिशत समय इधर उधर की बातों में काट देते हैं।
सवाल कई उठते है उनमें से पहला सवाल तो यही है कि जब देश का प्रधानमंत्री अपना 60 प्रतिशत समय केवल एक ही मुद्दे को दे तो वह मुद्दा कितना गंभीर है। क्या यह मान लिया जाये कि देश और देश की सीमायें असुरक्षित है ? क्या यह मान लिया जाए कि पाकिस्तान किसी भी वक़्त भारत पर कब्ज़ा कर सकता है ? क्या यह मान लिया जाये कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु मिसाइलों का मुख भारत की ओर मोड़ दिया है ? अगर यह मान लिया जाये तो नरेंद्र मोदी खुद अपनी छवि इतनी कमजोर कर लेते है कि पाकिस्तान जैसा अदना सा मुल्क भी उनपर चढ़ा आ रहा है।
अगर यह ना माना जाय तो सवाल यह है कि प्रधानमंत्री के भाषणों से 130 करोड़ जनता क्यों गायब है ? उनके सरोकार की बात प्रधानमंत्री क्यों नहीं करते ? लगातार सरकारी उपक्रम घाटे में क्यों जा रहें है ? 12000 किसान प्रतिवर्ष आत्महत्या करने पर मजबूर क्यों है ? 45 सालों में बेरोज़गारी अपने चरम पर क्यों है ? 2014 में 2.15 लाख करोड़ NPA बढ़कर 12.50 लाख करोड़ कैसे हो गया ? कैसे महात्मा बुद्ध और गाँधी की धरती पर भीड़ किसी की जान ले लेती है। किस तरह नोटबंदी और GST से आजतक व्यापारियों की जीविका पटरी पर नहीं लौट पायी है ? क्यों CJI को कहना पड़ा न्यायतंत्र खतरे में ? चुनाव आयोग मजबूर है कि वह कार्यवाही नहीं कर सकता ? किस तरह रातोरात सीबीआई के निर्देशक को छुट्टी पर भेज दिया जाता है ?
नरेंद्र मोदी सेना का जामा ओढ़ कर अपनी विफलताओं से छुपना चाहते है। नरेंद्र मोदी यह भूल गए है कि 1962 में युद्ध में किस तरह माताओं, बहनों और आम जनमानस ने आभूषण और पाई पाई तक सेना को समर्पित कर दिया था। उन्हें अपनी देशभक्ति दिखाने के लिए मोदी की आवश्यकता नहीं है। वे तब भी देशभक्त थे और आज भी है लेकिन यह स्पष्ट है कि मोदी को अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए सेना की जरुरत जरूर है। मोदी में यह साहस नहीं है कि अपने पांच सालों में किये कामों के दम पर आम जनमानस का सामना करें और वोट मांगे।
सवाल कई उठते है उनमें से पहला सवाल तो यही है कि जब देश का प्रधानमंत्री अपना 60 प्रतिशत समय केवल एक ही मुद्दे को दे तो वह मुद्दा कितना गंभीर है। क्या यह मान लिया जाये कि देश और देश की सीमायें असुरक्षित है ? क्या यह मान लिया जाए कि पाकिस्तान किसी भी वक़्त भारत पर कब्ज़ा कर सकता है ? क्या यह मान लिया जाये कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु मिसाइलों का मुख भारत की ओर मोड़ दिया है ? अगर यह मान लिया जाये तो नरेंद्र मोदी खुद अपनी छवि इतनी कमजोर कर लेते है कि पाकिस्तान जैसा अदना सा मुल्क भी उनपर चढ़ा आ रहा है।
अगर यह ना माना जाय तो सवाल यह है कि प्रधानमंत्री के भाषणों से 130 करोड़ जनता क्यों गायब है ? उनके सरोकार की बात प्रधानमंत्री क्यों नहीं करते ? लगातार सरकारी उपक्रम घाटे में क्यों जा रहें है ? 12000 किसान प्रतिवर्ष आत्महत्या करने पर मजबूर क्यों है ? 45 सालों में बेरोज़गारी अपने चरम पर क्यों है ? 2014 में 2.15 लाख करोड़ NPA बढ़कर 12.50 लाख करोड़ कैसे हो गया ? कैसे महात्मा बुद्ध और गाँधी की धरती पर भीड़ किसी की जान ले लेती है। किस तरह नोटबंदी और GST से आजतक व्यापारियों की जीविका पटरी पर नहीं लौट पायी है ? क्यों CJI को कहना पड़ा न्यायतंत्र खतरे में ? चुनाव आयोग मजबूर है कि वह कार्यवाही नहीं कर सकता ? किस तरह रातोरात सीबीआई के निर्देशक को छुट्टी पर भेज दिया जाता है ?
नरेंद्र मोदी सेना का जामा ओढ़ कर अपनी विफलताओं से छुपना चाहते है। नरेंद्र मोदी यह भूल गए है कि 1962 में युद्ध में किस तरह माताओं, बहनों और आम जनमानस ने आभूषण और पाई पाई तक सेना को समर्पित कर दिया था। उन्हें अपनी देशभक्ति दिखाने के लिए मोदी की आवश्यकता नहीं है। वे तब भी देशभक्त थे और आज भी है लेकिन यह स्पष्ट है कि मोदी को अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए सेना की जरुरत जरूर है। मोदी में यह साहस नहीं है कि अपने पांच सालों में किये कामों के दम पर आम जनमानस का सामना करें और वोट मांगे।
25th April, 2019