लखनऊ, यूरिड मीडिया न्यूज। मायावती कांग्रेस और सपा पर गठबन्धन को लेकर दबाव बना रही है और बार-बार यह कह रही है कि सम्मान जनक सीटे नही मिली तो अकेले चुनाव लड़ेगी। मायावती के ही बयान पर कांग्रेस और सपा दोनों समपर्ण भाव में आ जाते है। अखिलेश गठबन्धन के लिए दो कदम पीछे हटकर कम सीटों पर भी चुनाव लड़ने की बात कहते है। वही पर कांग्रेस दबाव में उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी बसपा को सीट देने के लिए तैयार हो जाते है। वास्तविकता यह है मायावती की यह बन्दर घुड़की केवल और केवल अधिक से अधिक सीटे लेकर गठबन्धन करने के लिए है। मायावती जानती है कि वर्तमान राजनीति माहौल में दलित एक बड़ा वोट बैंक है जिसका नेतृत्व बसपा कर रही है और दलित वोट पाने के लिए सपा, कांग्रेस और भाजपा तीनों दल बसपा से समझौते के लिए लालायित है। मायावती यह भी जानती है कि अकेले लड़ने का हश्र क्या होगा? अकेले लड़ने पर मायावती सबसे अधिक नुकसान में होगी। 2014 में 503 सीटों पर लड़ने वाली बसपा का खाता तक नही खुला है। वोट जरूर 4.19 प्रतिशत मिले है। मत प्रतिशत के आधार पर बसपा तीसरा सबसे बड़ा दल है भाजपा को 31.34 प्रतिशत मत और 282 सीटे मिली थी। जबकि कांग्रेस 19.52 प्रतिशत मत के साथ मात्र 44 सीटों पर सिमट कर रही गयी थी। गठबन्धन को लेकर दबाव बना रही मायावती अगर अकेले चुनाव लड़ती है तो उत्तर प्रदेश में भी अन्य राज्यों की तरह स्थिति होगी। जाति, धर्म में बंटे मतदाता बसपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है दलित वोट बैंक के सहारे मायावती 2019 में सम्मान जनक सीटें नही पा सकती है। स्थिति स्पष्ट है दलित के साथ बसपा को वोट देने वाला कोई दूसरा वोट बैंक नही है। उन सीटों पर बसपा प्रत्याशी को सजातीय व धार्मिक आधार पर समर्थन मिल सकता है। जिन सीटों पर चुनाव लड़ रहे है । एससी एसटी एक्ट से भाजपा के खिलाफ नाराजगी है तो बसपा से सवर्ण की नफरत जैसी स्थिति पैदा हो गयी है। एससी एसटी एक्ट को लेकर जिस तरह से पूरे देश में एक ऐसा माहौल बन गया है कि मायावती के दबाव में भाजपा ने निर्णय किया है। दूसरा सबसे बड़ी चुनौती में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सामने खड़ी है। प्रमोशन में आरक्षण पर विवाद जारी है एससी एसटी एक्ट में सशोधन करा के सफलता मिलने पर उत्साहित मायावती और आरक्षण समर्थक मोदी सरकार पर दबाव बना रहे है। मोदी सरकार प्रमोशन में आरक्षण को लेकर दबाव में हाथी दिख रही है। अगर प्रमोशन मे आरक्षण कराने में भी मायावती को सफलता मिल गयी तो गैर दलित वोट बैंक बसपा से और दूर चला जायेगा। बसपा अगर अकेले चुनाव मैदान में उतरती है तो मत प्रतिशत चाहे जो हो लेकिन सीटों की संख्या में कोई ज्यादा लाभ मिलने वाला नही है। बसपा के दबाव में कौन-कौन दल गठबन्धन करते है ये तो आने वाले समय में पता चल जायेगा। लेकिन अगर गठबन्धन को लेकर मायावती की भाषा में सम्मान जनक सीटों मिलने पर समझौता करने की वकालत दूसरे दल भी करने लगेगें, तो बसपा की भाषा बदल जायेगी। दलित वोट को लेकर दूसरे दल मायावती के दबाव में रहकर अगर अधिक सीटे देकर समझौता करते है तो सर्वाधिक फायदे में बसपा होगी।
19th September, 2018