देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में पिछले दो से महीने भर्ती हैं. अटल बिहारी वाजपेयी की हालत बुधवार को जयादा बिगड़ गई. उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया है. डॉक्टरों के मुताबिक अगले 24 घंटे बेहद महत्वपूर्ण हैं. इस बीच अटलजी के लिए दुआओं का दौर भी जारी है.
भारत की राजनीति में अटल जी का ऐसा व्यक्तित्व है जिन्हें विरोधी भी पसंद करते हैं. अटल जी जैसा वक्ता बिरले ही पैदा होते हैं. यही वजह है कि चाहे सदन हो या जनसभा जब भी वे बोलते थे तो उन्हें सुनने के लिए सभी आतुर रहते थे. अटल जी का यूपी से गहरा नाता रहा है. उन्होंने कानपुर से राजनीति शास्त्र में एमए किया और राजनीति में आए.
आज जब अटल जी की तबीयत नाजुक है तो उनके संगी-साथी उन्हें याद कर रहे हैं. 1957 में पहली बार अटल जी यूपी के बलरामपुर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से संसद पहुंचे. वे जनसंघ पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस के हैदर हुसैन को पराजित किया था.
प्रखर वक्ता के रूप में वाजपेयीजी जब लोकसभा में मुखर हुए तो कांग्रेस ने अगले चुनाव 1962 में उन्हें रोकने के लिए सुभद्रा जोशी को मैदान में उतार दिया. इतना ही नहीं वाजपेयी को घेरने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सुभद्रा के प्रचार में कॉमेडियन अभिनेता को उतारा दिया. परिणाम अटलजी के विपरीत गया और सुभद्रा जोशी 200 मतों से चुनाव जीतने में कामयाब हो गई. हालांकि 1967 के चुनाव में फिर वाजपेयी सुभद्रा जोशी को हराकर दिल्ली पहुंचे. इसके बाद वाजपेयी बलरामपुर के लिए बस नाम के रह गए. इसके बाद वे लखनऊ से कई बार सांसद रहे. 2005 में उन्होंने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया.
अटल जी 15 वर्षों तक बलरामपुर की सक्रिय राजनीति में कायम रहे. अटल जी की राजनीति का वह शुरुआती सफर आज भी यहां के लोगो की स्मृतियों रचा बसा है. अटल जी के साथी रहे तमाम लोग अब इस दुनियां में नही रहे, लेकिन अटल जी का बलरामपुर की धरती से लगाव आज भी जगजाहिर है. वो सभी स्मृतियां आज भी विद्यमान हैं.
16th August, 2018