यूरिड मीडिया - देश में 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां बढ़ गई है । भारतीय जनता पार्टी केंद्र में सरकार बचाने के लिए हर स्तर से चुनावी रणनीति तैयार कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपनी नई भूमिका में 2019 में कांग्रेस की सत्ता में लाना चाहते हैं। इन दोनों दलों से हटकर क्षेत्रीय दल केंद्र में काबिज़ होने के लिए जोड़ तोड़ कर महागठबंधन बनाने की सियासत कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 2014 की 282 सांसदों की संख्या को 2019 में और बढ़ने का दावा कर रहे हैं। राहुल गांधी 44 की संख्या 272 पहुंचाने में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करने के प्रयास में हैं लेकिन इन सब के बीच 2014 के चुनाव परिणाम को लेकर 2019 लोकसभा चुनाव में बदलते राजनीतिक माहौल की समीक्षा करते हैं तो यही सवाल उठता है कि आखिर 2019 में किसे बहुमत मिलेगा। स्थितियां साफ़ है और इसका विश्लेषण करें तो 2019 में क्या सम्भावना होंगी, उसको लेकर अनुमान लगाया जा सकता है।
2014 लोकसभा चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को 282 सीटें मिली और पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादों पर जनता ने भरोसा किया और 2014 के बाद से लेकर 2018 तक हुए सभी विधानसभा चुनाव में भी जनता ने मोदी पर विश्वास जताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जनता का यही भरोसा 2019 में सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। 2014 में जिन राज्यों में सर्वाधिक और शत प्रतिशत सीटेँ मिली थी उनमें उत्तर प्रदेश में 80 में 73, गुजरात में 26 में 26, राजस्थान में 25 में 25, मध्य प्रदेश में 29 से 27, झारखण्ड में 14 में 12, छत्तीसगढ़ में 11 में 10, हरियाणा में 10 में 7, दिल्ली में 7 में 7, उत्तराखंड में 5 में 5 , हिमाचल में 4 में 4, गोवा में 2 में 2 सीटें मिली थी। इस प्रकार इन 11 राज्यों की कुल 213 में से 198 सिटें मिली थी। विपक्ष को मात्र 15 सीटों पर रुकना पड़ा था। वर्त्तमान में राजनीतिक हालात है उसमें यह सवाल उठ रहे हैं और राजनीतिक विश्लेषक विश्लेषण भी कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन के बाद 73 सीटें भाजपा को नहीं मिल सकती। गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गोवा में शत प्रतिशत सीटें मिलना असंभव जैसा है। इन 198 सीटों में से काफी सीटें कम होने की संभावनाएं है। भाजपा का दूसरा सर्वाधिक सीटें देने वाले राज्य महाराष्ट्र 48 में 23 ,बिहार 40 में 22, कर्नाटक में 28 में 17,जम्मू एंड कश्मीर में 6 में 3 और असम में 14 में 7 सीटें मिली थी। इनमे महाराष्ट्र में शिव सेना, बिहार में नितीश से भी केमेस्ट्री सीटों को बटवारें को लेकर गड़बड़ा रही है। ऐसे में 6 राज्यों में 74 सीटें की पुनरावृत्ति 2019 में होगी ये भी सवाल उठ रहे हैं। इसके अलावा जिन 5 राज्यों में भाजपा की सबसे ख़राब स्थिति थी जिनमें पश्चिम बंगाल में 42 में 2, ओडिशा में 21 में 1, तमिलनाडु 39 में 1, आंध्र प्रदेश/तेलगाना 42 में 3 और केरल में 20 में एक भी सीट नहीं थी। इन प्रकार इन 5 राज्यों की 164 सीटें में मात्र 7 सीटें ही भाजपा को मिली हैं। वर्त्तमान में जो राजनीतिक माहौल है उपरोक्त 5 राज्यों मैं जहाँ भाजपा की ख़राब स्थिति थी बहुत अधिक सीटें बढ़ने की सम्भावना नहीं है।
2014 में मणिपुर मेघालय मिजोरम नागालैंड सिक्किम त्रिपुरा चंडीगढ, दादर एंड नगर हवेली, दमन एंड दीव, लक्षदीव, पांडुचेरी, अरुणाचल प्रदेश, अंडमान निकोबार में 17 सीटें है इसमें 5 सीटें भाजपा को मिली थी। भाजपा 2014 का आकड़ा बनाये रखेगी यही सबसे बड़ा सवाल है।
देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस 2014 लोकसभा चुनाव में 44 सीटें मिली थी जो कांग्रेस के इतिहास में अब तक की सबसे कम सीटें हैं। 16 राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों में 44 सीटें मिली जिनमें सर्वाधिक 9 सीट कर्नाकट और 8 सीट केरल की शामिल हैं। देश में 20 ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जहाँ पर कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। वर्त्तमान राजनीतिक हालत को देखते हुए ये माना जा सकता हैं कि 44 की संख्यां 272 तक पहुंचना बहुत बड़ी चुनौती है। सवाल ये उठ रहा है कि जब दोनों बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस को बहुमत मिलने की बहुत बड़ी चुनौती है तो ऐसे में अन्य किसी क्षेत्रीय पार्टी को बहुमत मिलना असंभव है। तीसरे मोर्चे में सपा, बसपा, बामदल, टीआरएस, शिवसेना, जेडीयू, एनसीपी आदि सभी क्षेत्रीय दल बहुमत से कोसो दूर खड़े है इसलिए बहुमत की चुनौती का सवाल बना हुआ है ।
2014 लोकसभा चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को 282 सीटें मिली और पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादों पर जनता ने भरोसा किया और 2014 के बाद से लेकर 2018 तक हुए सभी विधानसभा चुनाव में भी जनता ने मोदी पर विश्वास जताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जनता का यही भरोसा 2019 में सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। 2014 में जिन राज्यों में सर्वाधिक और शत प्रतिशत सीटेँ मिली थी उनमें उत्तर प्रदेश में 80 में 73, गुजरात में 26 में 26, राजस्थान में 25 में 25, मध्य प्रदेश में 29 से 27, झारखण्ड में 14 में 12, छत्तीसगढ़ में 11 में 10, हरियाणा में 10 में 7, दिल्ली में 7 में 7, उत्तराखंड में 5 में 5 , हिमाचल में 4 में 4, गोवा में 2 में 2 सीटें मिली थी। इस प्रकार इन 11 राज्यों की कुल 213 में से 198 सिटें मिली थी। विपक्ष को मात्र 15 सीटों पर रुकना पड़ा था। वर्त्तमान में राजनीतिक हालात है उसमें यह सवाल उठ रहे हैं और राजनीतिक विश्लेषक विश्लेषण भी कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन के बाद 73 सीटें भाजपा को नहीं मिल सकती। गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गोवा में शत प्रतिशत सीटें मिलना असंभव जैसा है। इन 198 सीटों में से काफी सीटें कम होने की संभावनाएं है। भाजपा का दूसरा सर्वाधिक सीटें देने वाले राज्य महाराष्ट्र 48 में 23 ,बिहार 40 में 22, कर्नाटक में 28 में 17,जम्मू एंड कश्मीर में 6 में 3 और असम में 14 में 7 सीटें मिली थी। इनमे महाराष्ट्र में शिव सेना, बिहार में नितीश से भी केमेस्ट्री सीटों को बटवारें को लेकर गड़बड़ा रही है। ऐसे में 6 राज्यों में 74 सीटें की पुनरावृत्ति 2019 में होगी ये भी सवाल उठ रहे हैं। इसके अलावा जिन 5 राज्यों में भाजपा की सबसे ख़राब स्थिति थी जिनमें पश्चिम बंगाल में 42 में 2, ओडिशा में 21 में 1, तमिलनाडु 39 में 1, आंध्र प्रदेश/तेलगाना 42 में 3 और केरल में 20 में एक भी सीट नहीं थी। इन प्रकार इन 5 राज्यों की 164 सीटें में मात्र 7 सीटें ही भाजपा को मिली हैं। वर्त्तमान में जो राजनीतिक माहौल है उपरोक्त 5 राज्यों मैं जहाँ भाजपा की ख़राब स्थिति थी बहुत अधिक सीटें बढ़ने की सम्भावना नहीं है।
देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस 2014 लोकसभा चुनाव में 44 सीटें मिली थी जो कांग्रेस के इतिहास में अब तक की सबसे कम सीटें हैं। 16 राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों में 44 सीटें मिली जिनमें सर्वाधिक 9 सीट कर्नाकट और 8 सीट केरल की शामिल हैं। देश में 20 ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जहाँ पर कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। वर्त्तमान राजनीतिक हालत को देखते हुए ये माना जा सकता हैं कि 44 की संख्यां 272 तक पहुंचना बहुत बड़ी चुनौती है। सवाल ये उठ रहा है कि जब दोनों बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस को बहुमत मिलने की बहुत बड़ी चुनौती है तो ऐसे में अन्य किसी क्षेत्रीय पार्टी को बहुमत मिलना असंभव है। तीसरे मोर्चे में सपा, बसपा, बामदल, टीआरएस, शिवसेना, जेडीयू, एनसीपी आदि सभी क्षेत्रीय दल बहुमत से कोसो दूर खड़े है इसलिए बहुमत की चुनौती का सवाल बना हुआ है ।
19th July, 2018