लखनऊ यूरिड मीडिया न्यूज । व्यक्तिगत कद बढ़ाने की मुख्यमंत्री योगीआदित्य नाथ और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या पर संघ की नाराजगी भारी पड़ी यह माना जाता है संघ का अपना एजेन्डा है उसे ही प्राथमिकता देते है संघ के एजेन्डे में कब कौन नेता मद्दगार होता है उसे ही आगे बढ़ाने मे सहयोग करते है। संघ के सहयोग से आगे बढने वाले नेता जब अपनी निजी महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने के लिए संघ की लाईन से अलग हटने का प्रयास करते है तो ऐसे नेताओं को संघ की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है। तमाम ऐसे उदाहरण है जो बड़े-बड़े नेता संघ की विचार धारा से अलग हटे है। तो उनका भविष्य भाजपा में अच्छा नही रहा है। भाजपा के वयोवृद्धि नेता पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवानी पाकिस्तान दौरे पर जिन्ना की मजार पर फूल चढ़ाने गये थे उनका राजनीतिक हश्र सामने है। यह भी माना जाता है कि अटल विहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भी इंडिया शाईनिग के व्यापक प्रचार-प्रसार से नाराज संघ ने बूथ स्तर पर सहयोग नही दिया था। जिसका भी नुकसान अटल विहारी सरकार को उठाना पड़ा।
उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशी सफलता तमाम कारणों के अलावा संघ का बूथ मैनेजमेंट भी रहा है। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री और केशव मौर्या को उप मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद दोनों नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के जय-जयकार में लग गये। संघ ने दोनों नेताओं को बार-बार कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा की जाने पर नाराजगी व्यक्त किया। सरकार में अन्य तमाम खामियों को दूर करने का सुझाव दिया। लेकिन दोनों नेता कम समय में ज्यादा पा गये और अनुभव हीनता के कारण संघ की सुझाव पर ध्यान नही दिया। योगी आदित्यनाथ पूरे देश में कमल खिलाने में लग गये और मोदी के बाद योगी की चर्चा होने लगी। इसी तरह केशव मौर्या अपने को मुख्यमंत्री ही समझने लगे और गलत फहमी में रहे कि वह अति-पिछड़ों के सर्वमान्य नेता और पार्टी के कद्दावर नेता हो गये है। यही कारण रहा कि एक वर्ष पूर्व गोरखपुर एवं फूलपुर लोकसभा रिक्त सीटों पर हुए उपचुनाव में करारी शिकस्त मिली। 2014 लोकसभा चुनाव परिणाम आंकडोें को देख तो दोनों संसदीय क्षेत्र में सपा एवं बसपा के कुल वोटे जोड़ने के बाद भी भाजपा से कम ही मत है।
चुनाव हारने के बाद की जा रही समीक्षा में अन्य कारणों में कम मतदान सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है अब सवाल यह है कि लोकसभा उपचुनाव एका-एक हुए नही है । एक वर्ष पूर्व 19 मार्च 2017 को भाजपा सरकार के गठन और योगी एवं केशव को मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद ही यह स्पष्ट हो गया था कि दोनों संसदीय क्षेत्र में उप चुनाव होने है। पूरे एक वर्ष का समय मिल गया है ऐसे में 1998 से लगातार चुनाव जीतने वाले योगी आदित्य नाथ का बूथ मैनेजमेंट एवं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में केशव मौर्या का पूरे प्रदेश में बूथ मैनेजमेंट का दावा करना अपने ही संसदीय क्षेत्र फूलपुर में क्यो फेल हो गया। इसके अलावा संगठन, सुनील बंसल का बूथ मैनेजमेंट और कार्यकत्र्ताओं को जोड़ने की योग्यता कहा चली गयी। यह निश्चित है कि तीनों संघ के गाईड लाईन पर चलने के बजाय मोदी शाह जिन्दाबाद कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा और अपने निजी स्वार्थ एवं कद बढ़ाने मे लग गये। जिससे नाराज संघ ने बूथ मैनेजमेंट इन्ही तीनो नेताओं के हवाले छोड़ दिया। जिसका परिणाम दोनों सीटांे पर हार हुई। अगर ऐसा नही होता तो केन्द्रऔर प्रदेश में भाजपा सरकार है मोदी एवं योगी जैसे प्रभावशाली नेता प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री है। अमितशाह जैसा राजनीतिक चाणक्य माना जाने वाला राष्ट्रीय अध्यक्ष है। अनुभवी नेता महेन्द्र पाण्डे प्रदेश अध्यक्ष है। ऐसे में ऐसी शर्मनाक हार से साबित हो गया है कि कार्यकत्र्ता और संघ के गाईड लाइन से हट कर अपना व्यक्तिगत कद और पद बढ़ाने वाले महत्वाकांक्षा नेताओं का हर्ष चुनाव में गोरखपुर एवं फूलपुर जैसे ही होगा।
16th March, 2018